
Indus Water Treaty: क्या था सिंधु जल समझौता जिसे पहलगाम अटैक के बाद भारत ने किया रद्द, और इससे पाकिस्तान पर क्या असर पड़ेगा?
Indus Water Treaty: 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हमले में निर्दोष नागरिकों की जान चली गई, जिससे देशभर में गम और गुस्से की लहर दौड़ गई। सोशल मीडिया से लेकर संसद तक पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग तेज़ हो गई। इस माहौल में भारत सरकार ने एक बड़ा और निर्णायक फैसला लेते हुए 1960 से लागू सिंधु जल समझौते को स्थगित कर दिया। यह निर्णय न सिर्फ राजनीतिक रूप से अहम है बल्कि इसका सीधा असर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और जीवनशैली पर पड़ने वाला है।
इस लेख में हम आपको विस्तार से बताएंगे कि क्या था सिंधु जल समझौता, इसकी शर्तें क्या थीं, भारत ने इसे क्यों रद्द किया और इससे पाकिस्तान को किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
क्या है सिंधु जल समझौता? what is Indus Water Treaty?
सिंधु जल समझौता (Indus Water Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को हुआ था। यह समझौता विश्व बैंक की मध्यस्थता से करवाया गया था। इस पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे।
इस समझौते के अंतर्गत सिंधु नदी प्रणाली की छह प्रमुख नदियों – सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज – के जल का बंटवारा किया गया था। इसमें तीन पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास और सतलुज) भारत को दी गईं, जबकि तीन पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम और चिनाब) पाकिस्तान को आवंटित की गईं।
जल का बंटवारा कैसे हुआ?
इस समझौते के अनुसार:
- भारत को रावी, ब्यास और सतलुज नदियों का पूरा जल उपयोग करने का अधिकार मिला।
- पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का जल उपयोग करने की अनुमति मिली, हालांकि भारत को इन नदियों के ऊपरी हिस्सों में सीमित सिंचाई और जल विद्युत परियोजनाएं विकसित करने की अनुमति थी, बशर्ते वे पाकिस्तान के जल प्रवाह को बाधित न करें।
इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच जल विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाना था।
विश्व बैंक की भूमिका
इस समझौते को लागू करवाने और निगरानी रखने में विश्व बैंक की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। युद्धकालीन स्थितियों – चाहे वह 1965 का युद्ध हो, 1971 का या 1999 का कारगिल युद्ध – में भी इस समझौते का उल्लंघन नहीं हुआ था। यह एकमात्र ऐसा द्विपक्षीय समझौता रहा है, जो हर हाल में लागू रहा।
सिंधु जल समझौता क्यों रद्द किया गया?
22 अप्रैल 2025 को हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने कड़ा रुख अपनाया। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ कहा कि पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है और वह सीमा पार से हमले रुकवाने में असफल रहा है।
ऐसे में भारत ने सिंधु जल समझौते को स्थगित करने का निर्णय लिया है। इसके अलावा कुछ और अहम निर्णय लिए गए हैं:
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अटारी बॉर्डर को अस्थायी रूप से बंद किया गया
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पाकिस्तान नागरिकों के लिए सार्क वीजा पर रोक
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पाकिस्तान से आए राजनयिकों की संख्या घटाकर 30 की गई
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राजनयिक निष्कासन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है
पाकिस्तान पर क्या असर पड़ेगा?
भारत द्वारा सिंधु जल समझौता रद्द करने से पाकिस्तान में पानी की किल्लत बढ़ सकती है। वर्तमान में भारत से पाकिस्तान को करीब 39 अरब क्यूबिक मीटर पानी जाता है, जो मुख्यतः सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों से आता है। यह जल पाकिस्तान की खेती और जल विद्युत परियोजनाओं की रीढ़ की हड्डी है।
संभावित प्रभाव:
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कृषि संकट: पाकिस्तान की करीब 80% कृषि भूमि सिंधु नदी के जल पर निर्भर है। जल प्रवाह बंद होने की स्थिति में वहां की फसलें बर्बाद हो सकती हैं।
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पेयजल संकट: शहरों और गांवों को मिलने वाला पेयजल प्रभावित हो सकता है।
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जल विद्युत परियोजनाएं ठप हो सकती हैं, जिससे ऊर्जा संकट उत्पन्न होगा।
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आर्थिक नुकसान: जल संकट का सीधा असर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, विशेषकर ग्रामीण और कृषि आधारित क्षेत्रों पर।
भारत की ओर से पहले भी हुई थी चेतावनी
यह पहला मौका नहीं है जब भारत ने सिंधु जल समझौते को लेकर सख्ती दिखाई हो।
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जनवरी 2023 में भारत ने पाकिस्तान को इस समझौते की शर्तों में बदलाव के लिए नोटिस भेजा था।
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2024 में दूसरा नोटिस भेजा गया, लेकिन पाकिस्तान की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं आया।
इस तरह पाकिस्तान ने बार-बार मौका मिलने के बावजूद कोई जिम्मेदार प्रतिक्रिया नहीं दी, जिससे यह फैसला अब अटल हो गया है।
क्या यह स्थगन स्थायी है?
फिलहाल भारत सरकार ने इस समझौते को स्थगित किया है, रद्द नहीं। इसका अर्थ यह है कि समझौते को फिर से लागू करने का विकल्प अभी मौजूद है। हालांकि इस बार भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक पाकिस्तान अपनी हरकतों में सुधार नहीं लाता, तब तक ऐसे समझौतों पर पुनर्विचार होता रहेगा।
सिंधु जल समझौते का स्थगन न सिर्फ भारत की एक कूटनीतिक जीत है, बल्कि यह एक कड़ा संदेश भी है कि अब आतंकवाद के खिलाफ भारत ‘नो टॉलरेंस’ नीति पर काम कर रहा है। पाकिस्तान को यह समझना होगा कि आतंकवाद को शह देने की कीमत उसे पानी, अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय रिश्तों के रूप में चुकानी पड़ सकती है।
इस फैसले से यह भी साबित होता है कि भारत अब केवल निंदा या चेतावनी तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि व्यवहारिक और रणनीतिक स्तर पर कठोर कदम उठाने को तैयार है।
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