
थराली (चमोली) | 04 जून 2025: उत्तराखंड की दुर्गम घाटियों में विकास की असली तस्वीर एक बार फिर सामने आ गई है। थराली को रतगांव से जोड़ने वाला निर्माणाधीन वैली ब्रिज दिनदहाड़े ध्वस्त हो गया—और साथ ही टूट गया ग्रामीणों का सालों पुराना भरोसा भी।
प्राणमती नदी पर बन रहा यह पुल करीब 60 मीटर लंबा था और रतगांव की 4,000 से अधिक आबादी के लिए यह पुल जीवन रेखा माना जा रहा था। लेकिन अफसोस, यह पुल पूरा बनने से पहले ही भरभराकर नदी में समा गया। न तो बारिश थी, न ज़लज़ला—बस सिस्टम की पुरानी लापरवाही ने एक बार फिर खुद को साबित कर दिया।
अनुभवहीन अफसरों पर ग्रामीणों का सीधा आरोप
स्थानीय ग्रामीणों में इस घटना को लेकर भारी आक्रोश है। ग्रामीणों का कहना है कि वे पिछले दो सालों से इस पुल के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे थे। आखिरकार जब काम शुरू हुआ, तो उनकी उम्मीदें भी शुरू हुईं—but सब कुछ ध्वस्त हो गया।
ग्रामीणों ने इस हादसे के लिए साफ तौर पर विभाग में तैनात अनुभवहीन अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि यह “विकास” नहीं, बल्कि जनता के साथ धोखा है।
बरसात आने वाली है, फिर गांव बन जाएगा ‘कैदखाना’
यह वही पुल है जो कुछ साल पहले आई बाढ़ में बह गया था, और तब से रतगांव के लोग मानो एक अलग टापू में तब्दील हो गए हैं। बरसात के दिनों में बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, बीमार को अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सकता, और जरूरी सामान लाना तक एक चुनौती बन जाता है।
अब जब नई बारिश आने को है, ग्रामीणों को डर है कि अगर जल्द ही पुल नहीं बना, तो रतगांव फिर एक बार दुनिया से कट जाएगा।
PWD का बचाव: ‘मजदूर की गलती थी!’
लोक निर्माण विभाग के सहायक अभियंता जगदीश कुमार टम्टा ने मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि—“यह पुल निर्माणाधीन था, और मजदूरों की लापरवाही के कारण गिरा। किसी की जान नहीं गई है, और हम दो दिन में फिर से काम शुरू करेंगे।”
लेकिन सवाल ये है—क्या दो दिन में भरोसा भी वापस लौटेगा?
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