खटीमा: भारत-नेपाल सीमा पर झनकईया के शारदा नदी तट पर हर वर्ष आयोजित होने वाला सिंघाड़ा मेला इस बार भी लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आठ से दस दिनों तक चलने वाले इस मेले में भारत और नेपाल के हजारों लोग शामिल हुए। खासतौर पर थारू जनजाति और अन्य काश्तकारों के लिए यह मेला बेहद खास होता है।

नेपाल और भारत के लोगों की भारी भागीदारी

सिंघाड़ा मेले में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश (पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर), और पड़ोसी देश नेपाल से हजारों लोग पहुंचते हैं। इस मेले का मुख्य आकर्षण स्वादिष्ट और सस्ते सिंघाड़े हैं, जिन्हें खरीदने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।

विनिमय परंपरा की झलक

यह मेला केवल खरीदारी का केंद्र नहीं है, बल्कि भारत की प्राचीन वस्तु विनिमय प्रणाली (बार्टर सिस्टम) का जीवंत उदाहरण भी है। थारू जनजाति और नेपाली किसान आज भी इस मेले में अपने अनाज और धान के बदले सिंघाड़े खरीदते हैं। यह परंपरा मेले की सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है।

व्यापारियों और मेलार्थियों का अनुभव

सिंघाड़ा व्यापारियों के अनुसार, मेले में इस वर्ष अच्छी बिक्री हुई। नेपाल से आए मेलार्थियों ने कहा कि वे हर साल इस मेले का इंतजार करते हैं, जहां उन्हें सस्ते और उच्च गुणवत्ता वाले सिंघाड़े मिलते हैं।

सांस्कृतिक विरासत की पहचान

मेले का आयोजन घने जंगलों के बीच होता है, जो इसे और भी विशेष बनाता है। यह केवल व्यापार का केंद्र नहीं, बल्कि भारत और नेपाल के सांस्कृतिक मेलजोल का प्रतीक भी है।

सिंघाड़ा मेला, अपनी सांस्कृतिक धरोहर और पारंपरिक परंपराओं के साथ, आज भी भारतीय संस्कृति की जीवंतता और उसके इतिहास को प्रदर्शित करता है।

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