
Mahaasu devta Uttarakhand: उत्तराखंड में न्याय के देवता हैं चार भाई महासू, जानिए उनकी रोचक गाथा और ऐतिहासिक महत्व
Mahaasu devta Uttarakhand: उत्तराखंड की देवभूमि न केवल प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जानी जाती है, बल्कि यहां की लोकपरंपराएं, लोकदेवता और धार्मिक आस्थाएं भी इस प्रदेश को विशिष्ट बनाती हैं। इन्हीं आस्थाओं के केंद्र में हैं – चार भाई महासू देवता, जिन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है।
देहरादून जिले के जौनसार-बावर क्षेत्र में बसे हनोल गांव में स्थित इनका मुख्य मंदिर ऐतिहासिक, धार्मिक और स्थापत्य की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। चलिए, इस लेख में जानते हैं महासू देवता की गाथा, मंदिर की बनावट, पौराणिक कहानियां और इनसे जुड़ी रोचक मान्यताएं।
हनोल: महासू देवता का प्रमुख धाम
हनोल गांव, जो टोंस नदी के पूर्वी तट पर बसा है, महासू देवता का प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह स्थान त्यूणी-मोरी मोटर मार्ग पर स्थित है और समुद्रतल से 1250 मीटर की ऊँचाई पर है। कहा जाता है कि पांडव लाक्षागृह से निकलकर इसी स्थान पर आकर कुछ समय के लिए रुके थे।
इस मंदिर की वास्तुकला की बात करें तो यह मिश्रित शैली में निर्मित है – जिसमें काठ-कुणी शैली का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। मंदिर के गर्भगृह तक पहुँचने के लिए चार प्रमुख द्वार हैं और गर्भगृह में केवल पुजारी ही प्रवेश कर सकता है।
कहां से आए महासू देवता?
महासू देवता को लोकमान्यता में महाशिव का अपभ्रंश माना गया है। इन्हें चार भाइयों के रूप में पूजा जाता है, जो भगवान शिव के ही चार रूप माने जाते हैं। ये चार भाई हैं:
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बासिक महासू – सबसे बड़े
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पबासिक महासू – दूसरे नंबर पर
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बूठिया महासू (बौठा महासू) – तीसरे
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चालदा महासू – सबसे छोटे और भ्रमणशील देवता
इनमें बासिक महासू का मंदिर मैंद्रथ में, पबासिक महासू का मंदिर बंगाण क्षेत्र के ठडियार में और बौठा महासू का मंदिर हनोल में स्थित है। चालदा महासू लगातार भ्रमण पर रहते हैं, जिनकी पालकी को लोग समय-समय पर विभिन्न गांवों में लेकर जाते हैं।
मंदिर की अनूठी वास्तुकला
हनोल मंदिर की स्थापत्य कला इसे उत्तराखंड के अन्य मंदिरों से अलग बनाती है। इसका निर्माण 9वीं सदी में माना जाता है, हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) के अनुसार यह 11वीं या 12वीं सदी में बना है। मंदिर में बिना गारे की चिनाई की गई है और इसकी संरचना में 32 कोणीय पत्थर ऊपर नीचे रखे गए हैं।
विशेषताएं:
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मंदिर की छत नागर शैली में बनी हुई है
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मुख्य गर्भगृह में भीम छतरी (भीम द्वारा लाया गया विशाल पत्थर) रखा गया है
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अंदर एक दिव्य जलधारा बहती रहती है, जिसका स्रोत आज तक अज्ञात है
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गर्भगृह में सदैव जलती ज्योति मौजूद रहती है
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मंदिर में चारों द्वार अलग-अलग प्रतीकात्मकता लिए हुए हैं
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पहले द्वार पर नवग्रहों की कलाकृति उकेरी गई है
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राष्ट्रपति भवन से संबंध
हनोल स्थित महासू देवता के मंदिर का राष्ट्रपति भवन से सीधा संबंध है। हर वर्ष राष्ट्रपति भवन की ओर से इस मंदिर को नमक भेंट में भेजा जाता है, जिसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि यह नमक न्याय की निष्पक्षता का प्रतीक है।
भीम के गोले – शक्ति का प्रमाण
हनोल मंदिर परिसर में दो लोहे के गोले रखे हैं, जिन्हें देखकर हर कोई चकित रह जाता है। मान्यता है कि ये गोले भीम द्वारा खेल के लिए उपयोग किए जाते थे।
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पहला गोला: वजन 240 किलो (6 मण)
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दूसरा गोला: वजन 360 किलो (9 मण)
छोटे आकार के बावजूद इन गोलों को उठाना बड़े से बड़े पहलवानों के लिए भी आसान नहीं है।
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चालदा महासू – भ्रमणशील देवता
चारों भाइयों में से चालदा महासू ऐसे देवता हैं जो एक स्थान पर नहीं रहते। ये 12 वर्ष देहरादून जिले में और 12 वर्ष उत्तरकाशी जिले में भ्रमण करते हैं। इनकी डोली हर वर्ष एक नए स्थान पर ले जाई जाती है। इन प्रमुख स्थलों में हाजा, बिशोई, मशक, उदपाल्टा, मौना आदि स्थान शामिल हैं।
चालदा महासू की यात्रा को देखने और उनकी पूजा का अवसर प्राप्त करना कई लोगों के लिए एक जीवन का अवसर होता है, क्योंकि कभी-कभी दशकों बाद ही देवता का आगमन होता है।
महासू के चार वीर
चारों महासू भाइयों के चार वीर भी हैं, जो उनके अंगरक्षक माने जाते हैं:
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कफला वीर – बासिक महासू के
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गुडारु वीर – पबासिक महासू के
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कैलू वीर – बूठिया महासू के
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सेकुड़िया वीर – चालदा महासू के
इन वीरों के भी जौनसार-बावर में छोटे मंदिर बने हुए हैं, जो इनकी उपस्थिति और सुरक्षा की मान्यता को दर्शाते हैं।
महासू मंदिर पहुंचने के तीन मार्ग
देहरादून से महासू देवता के मंदिर तक पहुंचने के तीन प्रमुख मार्ग हैं:
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मार्ग 1: देहरादून → विकासनगर → चकराता → त्यूणी → हनोल (188 किमी)
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मार्ग 2: देहरादून → मसूरी → नैनबाग → पुरोला → मोरी → हनोल (175 किमी)
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मार्ग 3: देहरादून → विकासनगर → छिबरौ डैम → क्वाणू → मिनस → हटाल → हनोल (178 किमी)
इनमें से कोई भी मार्ग प्राकृतिक सौंदर्य और साहसिक यात्रा के लिए उपयुक्त है।
महासू देवता: लोक न्याय के प्रतीक
महासू देवता को न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। उनके मंदिर को लोक न्यायालय माना जाता है, जहां लोग आस्था के साथ न्याय की गुहार लगाते हैं। देहरादून, उत्तरकाशी और हिमाचल प्रदेश के सोलन, सिरमौर, शिमला और जुब्बल क्षेत्रों में इन्हें कुल देवता के रूप में पूजा जाता है।
पूजा परंपराएं
हनोल मंदिर में बूठिया महासू की पूजा तीन गांवों – निनुस, पुट्टाड़ और चातरा – के पुजारियों द्वारा की जाती है। प्रत्येक गांव के पुजारी एक-एक महीने की बारी से पूजा करते हैं।
अन्य स्थानों की पूजा व्यवस्था:
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मैंद्रथ में: निनुस, बागी, मैंद्रथ गांवों के पुजारी
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ठडियार में: डगलू गांव के पुजारी
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चालदा महासू के साथ: निनुस, पुट्टाड़, मैंद्रथ व चातरा गांवों के पुजारी भ्रमण करते हैं
धार्मिक-सांस्कृतिक धरोहर
हनोल मंदिर केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर भी है। ASI द्वारा संरक्षित यह मंदिर एक जीवंत स्मृति है उस काल की, जब देवता केवल मूर्तियों तक सीमित नहीं थे, बल्कि लोगों के जीवन में हर रोज न्याय और मार्गदर्शन का कार्य करते थे।
लोक आस्था की जीवंत मिसाल
चारों भाई महासू देवता न केवल उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान हैं, बल्कि यह भी प्रमाण हैं कि आज भी लोकदेवता लोगों की आस्था का जीवंत केंद्र बने हुए हैं। हनोल मंदिर की स्थापत्य शैली, पौराणिक मान्यताएं, न्याय की परंपरा और भ्रमणशील देवता की विशिष्टता – यह सब कुछ इस मंदिर को उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के प्रमुख देवस्थलों में एक विशेष स्थान प्रदान करता है।
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