
क्यों पहनते हैं जनेऊ? (Why Do We Wear a Janeyu?)
Janeyu: हिंदू धर्म में जनेऊ धारण करना एक अत्यंत पवित्र और धार्मिक प्रक्रिया मानी जाती है। जनेऊ (Upanayana Sanskar) केवल एक धागा नहीं, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन में ज्ञान, अनुशासन और आध्यात्मिकता के आरंभ का प्रतीक है। आमतौर पर यह संस्कार बालक के लगभग 12 वर्ष की आयु में संपन्न किया जाता है, जिससे उसे “विद्यार्थी जीवन” में प्रवेश का अधिकार मिलता है।
जनेऊ धारण करना केवल धार्मिक परंपरा ही नहीं, बल्कि यह हमारे जीवन में कई वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ भी लाता है। आइए जानते हैं इसके पीछे की गहराई से अर्थ और महत्व।
जनेऊ क्या है? (What is Janeyu?)
जनेऊ एक सफेद सूती धागा होता है, जिसे बाएं कंधे से दाहिनी ओर शरीर पर पहना जाता है। यह तीन पवित्र सूतों से बना होता है, जो तीन प्रमुख जिम्मेदारियों का प्रतीक हैं—
देव ऋण (भगवान के प्रति कर्तव्य), पितृ ऋण (माता-पिता के प्रति कर्तव्य), और गुरु ऋण (शिक्षक के प्रति कर्तव्य)।
यह धागा व्यक्ति को यह स्मरण कराता है कि उसे इन तीनों ऋणों को जीवनभर निभाना है।
धार्मिक महत्व (Religious Significance of Janeyu)
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, हर व्यक्ति का जीवन दो जन्मों में विभाजित होता है—
पहला जन्म शारीरिक होता है, और दूसरा ज्ञान का जन्म होता है।
उपनयन संस्कार या जनेऊ धारण करना इसी “दूसरे जन्म” का प्रतीक है, जहां व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान और शिक्षा के मार्ग पर अग्रसर किया जाता है।
जनेऊ के तीन सूत हिंदू धर्म की तीन प्रमुख देवियों से भी जुड़े हैं—
सरस्वती देवी – ज्ञान की देवी
लक्ष्मी देवी – धन की देवी
पार्वती देवी – शक्ति की देवी
इस प्रकार जनेऊ धारण करने वाला व्यक्ति इन तीनों शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्व (Scientific Significance of Janeyu)
जनेऊ पहनने के पीछे केवल धार्मिक नहीं, बल्कि कई वैज्ञानिक कारण भी छिपे हुए हैं —
मस्तिष्क की कार्यक्षमता में वृद्धि:
जनेऊ बाएं कंधे पर पहनने से शरीर के दाएं मस्तिष्क (Right Brain) की सक्रियता बढ़ती है। यह भाग रचनात्मकता, स्मरणशक्ति और तर्कशक्ति से जुड़ा होता है। इसलिए विद्यार्थी जीवन की शुरुआत में जनेऊ पहनना लाभकारी माना गया है।
ऊर्जा प्रवाह और चक्र संतुलन:
जनेऊ धारण करने से शरीर के सातों चक्रों में ऊर्जा का संतुलन बना रहता है। जब इसे कान पर बांधा जाता है, तो इससे शरीर में एक हल्का दबाव बनता है जो पाचन शक्ति और स्मरणशक्ति दोनों को बढ़ाता है।
रक्तचाप नियंत्रण:
जनेऊ पहनने से शरीर में ऊर्जा प्रवाह संतुलित रहता है, जिससे ब्लड प्रेशर (Blood Pressure) से संबंधित समस्याओं की संभावना कम होती है।
आध्यात्मिक एकाग्रता:
जनेऊ व्यक्ति को ध्यान, संयम और अनुशासन की ओर प्रेरित करता है। यह धागा हर क्षण उसे उसके कर्तव्यों और आचरण की याद दिलाता है।
जनेऊ पहनने की विधि (How to Wear Janeyu)
जनेऊ धारण संस्कार आमतौर पर 7 से 12 वर्ष की आयु में किया जाता है।
संस्कार के दौरान बालक का सिर मुंडवाया जाता है और केवल एक चोटी (शिखा) छोड़ दी जाती है, जिससे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
जनेऊ को बाएं कंधे से दाहिनी कमर तक पहनाया जाता है। धारण करते समय गायत्री मंत्र का उच्चारण किया जाता है:
“ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥”
अविवाहित व्यक्ति तीन सूत्रों वाला जनेऊ धारण करता है, विवाहित व्यक्ति छह सूत्रों वाला, और संतानवान व्यक्ति नौ सूत्रों वाला जनेऊ पहनता है।
जनेऊ धारण करने के नियम (Rules for Wearing Janeyu)
आचमन (Aachamanam):
सबसे पहले जल लेकर “शूलं भद्रं धरं विष्णुं” मंत्र का उच्चारण किया जाता है ताकि शरीर और मन दोनों शुद्ध हो सकें।
मंत्र जाप:
गायत्री मंत्र, व्याहृति मंत्र और ज्योतिरसा मंत्र का तीन बार जप किया जाता है।
संकल्प:
परमात्मा का ध्यान करके मन से सभी पापों और बाधाओं को दूर करने का संकल्प लिया जाता है।
धारण प्रक्रिया:
जनेऊ को दोनों हाथों से पकड़कर बाएं कंधे से दाहिनी ओर लटकाया जाता है और नीचे का भाग पानी में डुबोया जाता है।
मुख्य मंत्र:
जनेऊ पहनते समय यह मंत्र बोला जाता है—
“यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः॥”
जनेऊ का प्रतीकात्मक अर्थ (Symbolic Meaning)
जनेऊ हमें यह सिखाता है कि जीवन केवल भोग का नहीं, बल्कि योग का मार्ग है।
यह व्यक्ति के भीतर जिम्मेदारी, आत्मसंयम, और आध्यात्मिकता की भावना जगाता है।
इस धागे की तरह ही, मनुष्य को भी अपने जीवन में सादगी, पवित्रता और समर्पण की डोर से बंधे रहना चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
जनेऊ पहनना हिंदू संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह हमें हमारे मूल, धर्म, और जीवन के कर्तव्यों से जोड़ता है।
यह केवल एक रेशमी धागा नहीं, बल्कि संस्कार, अनुशासन और आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है।
भले ही आज आधुनिकता के कारण कई लोग इस परंपरा से दूर हो गए हों, लेकिन इसका महत्व आज भी उतना ही गहरा है जितना सदियों पहले था।
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