
Mahalaxmi Vrat Katha: जानें महालक्ष्मी व्रत कथा के बारें में
Mahalaxmi Vrat Katha: हिंदू धर्म में महालक्ष्मी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल अष्टमी से शुरू होता है और पूरे 16 दिनों तक चलता है। यह व्रत विशेष रूप से मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है ताकि घर में धन-धान्य, सुख-समृद्धि और शांति बनी रहे। महालक्ष्मी व्रत को लेकर अनेक लोककथाएं प्रचलित हैं। इन कथाओं में आस्था, चमत्कार, भक्ति और धर्म का गहरा संदेश छिपा है। इस लेख में हम विस्तार से महालक्ष्मी व्रत की तीन प्रमुख पौराणिक कथाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं।
महालक्ष्मी व्रत का महत्व
हिंदू संस्कृति में लक्ष्मी देवी को धन, वैभव और समृद्धि की देवी माना गया है। महालक्ष्मी व्रत करने से जीवन की आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और दरिद्रता समाप्त होती है। यह व्रत विशेषकर 16 दिन तक किया जाता है, जिसमें श्रद्धालु प्रति दिन विधिपूर्वक पूजन, व्रत और कथा पाठ करते हैं।
प्रथम पौराणिक कथा: कुंती और गांधारी की कथा
महाभारत काल की यह कथा अत्यंत प्रसिद्ध है। एक बार महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर आए। वहां महाराज धृतराष्ट्र ने उन्हें अपने महल में आमंत्रित किया। महल में रानी कुंती और रानी गांधारी ने वेदव्यास जी से प्रार्थना की:
“हे मुनिवर! कृपया बताइए कि हमारे राज्य में सुख-समृद्धि और लक्ष्मी जी की कृपा कैसे बनी रहे?”
वेदव्यास जी ने उत्तर दिया –
“यदि आप राज्य में सुख-समृद्धि चाहती हैं तो हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को विधिपूर्वक महालक्ष्मी व्रत करें।”
इस सलाह को गांधारी और कुंती ने स्वीकार किया। रानी गांधारी ने महल के आंगन में अपने 100 पुत्रों की मदद से एक विशालकाय गज (हाथी) बनवाया और नगर की सभी महिलाओं को महालक्ष्मी पूजन हेतु आमंत्रित किया। परंतु कुंती को आमंत्रण नहीं भेजा।
जब नगर की स्त्रियां गांधारी के महल जा रही थीं, तब कुंती उदास हो गईं। पांचों पांडवों ने अपनी मां से दुख का कारण पूछा। कुंती ने सारी बात बताई। तब अर्जुन बोले –
“मां, आप पूजन की तैयारी कीजिए, मैं आपके लिए स्वर्ग से हाथी लेकर आता हूं।”
अर्जुन तुरंत इंद्रलोक पहुंचे और वहां से ऐरावत हाथी लेकर लौटे। जब यह खबर नगर में फैली कि कुंती के महल में स्वर्ग से हाथी आया है, तो सभी महिलाएं वहां पूजन के लिए उमड़ पड़ीं। महालक्ष्मी जी की पूजा विधिपूर्वक की गई।
इस व्रत की विशेषता:
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यह व्रत 16 दिन किया जाता है।
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पूजा सामग्री भी 16 बार चढ़ाई जाती है।
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कथा को भी 16 बार पढ़ा या सुना जाता है।
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि सच्ची श्रद्धा, समर्पण और निष्ठा से किया गया व्रत अवश्य फलदायी होता है।
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दूसरी पौराणिक कथा: गरीब ब्राह्मण और मां लक्ष्मी
प्राचीन काल में एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। एक दिन उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और बोले –
“वत्स! मांगो, क्या वरदान चाहिए?”
ब्राह्मण बोला –
“भगवन! मैं चाहता हूं कि मेरे घर हमेशा लक्ष्मी जी का वास रहे।”
भगवान विष्णु मुस्कराए और बोले –
“तुम्हें लक्ष्मी तो मिलेगी, पर इसके लिए एक कार्य करना होगा। हमारे मंदिर के सामने एक स्त्री रोज उपले पाथती है, तुम उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण देना।”
अगले दिन ब्राह्मण सुबह चार बजे मंदिर के सामने बैठ गया। जब वह स्त्री आई, तो उसने उसे घर आने का आग्रह किया। वह स्त्री कोई और नहीं, मां लक्ष्मी ही थीं। उन्होंने कहा –
“अगर तुम 16 दिन तक महालक्ष्मी व्रत करोगे और हर रात चंद्रमा को अर्घ्य दोगे, तो मैं तुम्हारे घर अवश्य आऊंगी।”
ब्राह्मण ने पूरे श्रद्धा भाव से व्रत और पूजन किया। व्रत के समापन पर उत्तर दिशा की ओर मुख करके मां लक्ष्मी का आवाहन किया। प्रसन्न होकर देवी प्रकट हुईं और ब्राह्मण के जीवन की दरिद्रता को दूर कर उसके घर में धन-संपत्ति भर दी।
इस कथा से सीख:
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ईश्वर की सच्ची भक्ति और श्रद्धा कभी व्यर्थ नहीं जाती।
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नियमपूर्वक महालक्ष्मी व्रत करने से दरिद्रता समाप्त होती है।
तीसरी पौराणिक कथा: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी
एक बार भगवान विष्णु मृत्युलोक (पृथ्वी) पर भ्रमण करने निकले। मां लक्ष्मी भी साथ चलने की जिद करने लगीं। भगवान ने शर्त रखी –
“तुम्हें जैसा मैं कहूं, वैसा ही करना होगा।”
माता ने सहर्ष यह शर्त स्वीकार कर ली। वे पृथ्वी पर पहुंचे। एक स्थान पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने कहा –
“मैं दक्षिण दिशा में जा रहा हूं, तुम यहीं प्रतीक्षा करो।”
परंतु माता लक्ष्मी का स्वभाव चंचल था। वे रुक नहीं सकीं। उन्होंने दक्षिण दिशा में जाने का निश्चय किया। रास्ते में उन्हें सरसों का खेत दिखा, वहां से फूल लेकर वे सिंगार करने लगीं। फिर उन्हें गन्ने का खेत मिला और वे गन्ना चूसने लगीं।
तभी भगवान विष्णु लौटे और माता को देखकर क्रोधित हो गए। उन्होंने कहा –
“तुमने मेरी शर्त तोड़ी है। इसलिए मैं तुम्हें 12 वर्ष तक एक किसान के घर सेवा करने का शाप देता हूं।”
माता लक्ष्मी अब एक किसान के घर रहने लगीं। एक दिन उन्होंने किसान की पत्नी से कहा –
“मेरी प्रतिमा की पूजा करो, जो भी मांगोगी वह मिलेगा।”
किसान की पत्नी ने व्रत किया और कुछ ही दिनों में उनका घर धन-धान्य से भर गया।
12 वर्ष बाद, भगवान विष्णु जब लौटे तो किसान माता को छोड़ने को तैयार नहीं हुआ। तब माता लक्ष्मी ने कहा –
“यदि तुम कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (धनतेरस) के दिन मेरी विधिपूर्वक पूजा करो, तो मैं तुम्हारे घर सदा रहूंगी।”
किसान ने माता के बताए अनुसार पूजा की और कलश स्थापना करके उसमें धन रखा। तब से धनतेरस पर महालक्ष्मी की पूजा का प्रचलन शुरू हुआ।
महालक्ष्मी व्रत कैसे करें?
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व्रत की शुरुआत: भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से।
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व्रत की अवधि: 16 दिन।
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संध्या पूजन: प्रतिदिन दीप जलाकर महालक्ष्मी का पूजन करें।
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चंद्रमा को अर्घ्य: रोज रात चंद्रमा को जल अर्पित करें।
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पूजन सामग्री:
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गज (हाथी) की मिट्टी या धातु की मूर्ति
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कलश
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अक्षत, पुष्प, दीप, धूप, नैवेद्य
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पंचमेवा, लाल वस्त्र, स्वर्ण या चांदी का सिक्का
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महालक्ष्मी व्रत की विशेषताएं:
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यह व्रत घर की स्त्रियों द्वारा विशेष रूप से किया जाता है।
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इस व्रत में पूजा “सोलह” (16) की संख्या को विशेष रूप से महत्व दिया जाता है – जैसे 16 दिन, 16 बार कथा, 16 प्रकार की सामग्री।
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यह व्रत नवविवाहिताओं के लिए बहुत शुभ माना जाता है।
महालक्ष्मी व्रत न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि श्रद्धा, धैर्य और संकल्प से किया गया कोई भी कार्य अवश्य फल देता है। इस व्रत की तीनों कथाएं यही प्रेरणा देती हैं कि सच्चे मन से मां लक्ष्मी का पूजन करने पर जीवन में कोई भी कष्ट नहीं टिकता।
महालक्ष्मी व्रत सिर्फ धन प्राप्ति का मार्ग नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक उन्नति, पारिवारिक सुख और मानसिक शांति का भी प्रतीक है। जो भी भक्त इस व्रत को विधिपूर्वक और श्रद्धा से करता है, मां लक्ष्मी उसकी झोली खुशियों से भर देती हैं।
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