
Jaunsar Bawar Uttarakhand: जानें जौनसार बाबर उत्तराखंड के बारें में
Jaunsar Bawar Uttarakhand: जौनसार-बावर उत्तराखंड के गढ़वाल प्रभाग में स्थित एक पहाड़ी क्षेत्र है, जो देहरादून जिले के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में हिमाचल प्रदेश की सीमा के समीप स्थित है। यह क्षेत्र अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर, प्राकृतिक सुंदरता और विशिष्ट जीवनशैली के लिए जाना जाता है। जौनसार-बावर मुख्यतः दो भागों में विभाजित है — निचला हिस्सा जौनसार कहलाता है, जबकि ऊपरी हिमाच्छादित क्षेत्र को बावर कहा जाता है, जिसमें ‘खरंबा पीक’ (3,084 मीटर ऊँचाई) भी शामिल है। भौगोलिक दृष्टि से ये दोनों क्षेत्र एक-दूसरे से सटे हुए हैं, लेकिन सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से इनमें सूक्ष्म भिन्नताएँ देखी जाती हैं।
जौनसार-बावर का कुल क्षेत्रफल लगभग 1002 वर्ग किलोमीटर फैला हुआ है, जिसमें लगभग 398 गांव हैं, जैसे कोटी कॉलोनी, सहिया मार्केट कालसी, सकानी, कंबुआ और ककड़ी। यह क्षेत्र पूर्व में यमुना नदी, पश्चिम में टौंस नदी से सीमांकित है, और उत्तर में उत्तरकाशी जिला तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ भाग शामिल हैं। दक्षिण की ओर देहरादून तहसील इसका सीमांत क्षेत्र बनाती है। इस क्षेत्र में मुख्य आजीविका कृषि और पशुपालन है, हालांकि ऊपरी क्षेत्रों में खेती अधिकतर स्व-खाद्यनिर्भरता के लिए होती है क्योंकि केवल 10 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। दूध, ऊन और मांस इस क्षेत्र की स्थानीय अर्थव्यवस्था का अभिन्न हिस्सा हैं।
जौनसार बाबर उत्तराखंड का इतिहास और भूगोल (History Of Jaunsar Bawar Uttarakhand)
इतिहास की दृष्टि से जौनसार-बावर कभी हिमाचल प्रदेश के सिरमौर राजवंश का हिस्सा था, जो अब सिरमौर जिला के रूप में जाना जाता है। यह क्षेत्र गढ़वाल के सीमांत भाग के रूप में विख्यात है। 1829 में यह क्षेत्र चकराता तहसील में सम्मिलित किया गया, जबकि इससे पूर्व यह पंजाब राज्य के अंतर्गत सिरमौर का हिस्सा था। 1814 में अंग्रेजों द्वारा गढ़वाल क्षेत्र पर विजय प्राप्त करने के बाद यह देहरादून के साथ अंग्रेजी शासन में आ गया। ब्रिटिश काल में 1866 में भारतीय सेना के छावनी के स्थापना से पूर्व यह पूरा क्षेत्र जौनसार-बावर के नाम से प्रसिद्ध था, और यह नाम 20वीं सदी के आरंभ तक लोकप्रिय था।
भौगोलिक रूप से जौनसार-बावर पहाड़ी क्षेत्र में देवदार, पाइन और स्प्रूस के घने वन पाए जाते हैं, जो ब्रिटिश काल में लकड़ी उद्योग के लिए महत्वपूर्ण थे। इस क्षेत्र की खड़ी पहाड़ी सड़कों पर ब्रिटिश काल से लागू एक-तरफा यातायात व्यवस्था भी थी, जो अब समाप्त कर दी गई है। यहाँ की प्राकृतिक संपदा के कारण यह क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जौनसार बाबर उत्तराखंड की संस्कृति और समाज (Culture Of Jaunsar Bawar Uttarakhand)
जौनसार-बावर की संस्कृति अपने आसपास के गढ़वाल और हिमाचल प्रदेश के क्षेत्रों से अलग और विशिष्ट है, यद्यपि इनमें कुछ समानताएं भी पाई जाती हैं। यहां की सांस्कृतिक पहचान मुख्य रूप से उस समय के सिरमौर और शिमला क्षेत्रों से मिली-जुली है, क्योंकि जौनसार-बावर लंबे समय तक सिरमौर राजवंश का हिस्सा था। जौनसारी भाषा, जो पश्चिमी पहाड़ी समूह की इंडो-आर्यन भाषाओं में आती है, यहां के लोगों की प्रमुख भाषा है। यह भाषा गढ़वाली भाषा से मिलती-जुलती है, किन्तु इसके उच्चारण और व्याकरण में शिमला और सिरमौर क्षेत्रों के लोगों की भाषा के समानताएं पाई जाती हैं।
समाज में जातिगत व्यवस्था बहुत कठोर है। उच्च जातियों में ब्राह्मण और राजपूत (जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘खोश’ कहा जाता है) आते हैं, जो अधिकांश भूमि मालिक होते हैं। निम्न जातियों में बादोई (परंपरागत रूप से वास्तुकार/बिल्डर), लोहार-सुनार, ढाकी, दूम आदि शामिल हैं।
यहाँ के स्थानीय लोगों की परंपराओं में कई अनोखे रीत-रिवाज देखे जा सकते हैं। उदाहरण स्वरूप विवाह के समय ‘दुल्हन मूल्य’ की परंपरा है, जिसमें विवाह हेतु लड़के के परिवार को लड़की के परिवार को दुल्हन मूल्य देना होता है। यह परंपरा इस तर्क पर आधारित है कि लड़की का परिवार उसे पाला-पोसा, शिक्षित किया और घर का कामकाज सम्भालने के लिए तैयार किया, इसलिए लड़की उनके लिए एक संपत्ति के समान है।
तलाक यहाँ सामाजिक दृष्टि से कलंकित नहीं माना जाता। तलाकशुदा महिलाएं समाज से बहिष्कृत नहीं होतीं। यदि महिला तलाक के बाद अपने पिता के घर वापस जाती है, तो उसके परिवार को दुल्हन मूल्य वापस करना पड़ता है। यदि महिला दूसरे से विवाह करती है, तो दूसरे पति को पहला दुल्हन मूल्य देना होता है। हालांकि समय के साथ यह परंपरा कुछ सीमित समुदायों तक सिमटती जा रही है।
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जौनसार बाबर उत्तराखंड का नृत्य (Dance Of Jaunsar Bawar Uttarakhand)
जौनसार-बावर के लोक नृत्य इसकी सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनमें हारुल, घुंडिया रसो, झेंटा रसो, जंगबाज़ी, थोड़े आदि नृत्य प्रसिद्ध हैं। ये नृत्य सामूहिक उत्सवों में परंपरागत वाद्यों के साथ प्रस्तुत किए जाते हैं और यहां के लोकजीवन का जीवंत चित्रण करते हैं।
स्थानीय देवता महासू हैं, जिनकी पूजा और आराधना यहां के लोगों के जीवन का केंद्र है। क्षेत्र में कई महाशू देवता के मंदिर हैं, जैसे हनोल का महासू देवता मंदिर, बुलहड़ का महासू मंदिर, भरम खात मंदिर (थैना), लाखवार, लाखसियार, बिसोई और लोहाड़ी में नए मंदिर शामिल हैं। ये मंदिर धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रमुख स्थल हैं।
जौनसार बाबर उत्तराखंड की आवासीय वास्तुकला (Vastukala Of Jaunsar Bawar Uttarakhand)
जौनसार-बावर की वास्तुकला क्षेत्र की जलवायु और भौगोलिक आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित हुई है। यहां के घर आमतौर पर पत्थर और लकड़ी से बनाए जाते हैं, जिनकी छत स्लेट टाइल्स से ढकी होती है। मकान आमतौर पर दो से तीन मंजिला होते हैं, जिनमें एक मंजिल पर एक से चार कमरे होते हैं। ये मकान पहाड़ी की ढलानों के अनुरूप बनते हैं और टेरेस वाली जमीन पर स्थापित होते हैं। लकड़ी की नक्काशी और स्लेट वाली छतें इस क्षेत्र की विशिष्ट वास्तुकला का हिस्सा हैं।
यहां के भवनों के निर्माण में देवदार की लकड़ी सबसे अधिक प्रयोग होती है, जो स्थानीय रूप से उपलब्ध होने के साथ-साथ टिकाऊ भी है। अन्य निर्माण सामग्री में साधारण पत्थर, मिट्टी और स्लेट पत्थर शामिल हैं। जौनसार-बावर की वास्तुकला में सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों की झलक मिलती है, जो इस क्षेत्र की जीवन शैली को दर्शाती है।
जौनसार बाबर उत्तराखंड की आयुर्वेदिक एवं लोक चिकित्सा
जौनसार-बावर के लोग सदियों से अपने पारंपरिक औषधीय ज्ञान के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां के स्थानीय लोग विभिन्न रोगों के उपचार के लिए सौ से अधिक पौधों का उपयोग करते हैं। इस क्षेत्र के जड़ी-बूटियों और औषधीय पौधों का अध्ययन कई एथनोबोटैनिकल और एथनोफार्माकोलॉजिकल शोधों का विषय रहा है। उनकी आयुर्वेदिक और लोक चिकित्सा पद्धतियाँ विज्ञान जगत में भी रुचि का विषय रही हैं।
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जौनसार बाबर उत्तराखंड का सांस्कृतिक चित्रण और मीडिया
जौनसार-बावर के जीवन, संस्कृति और सामाजिक पहलुओं पर कई शोध और डॉक्युमेंट्री फिल्में बन चुकी हैं। 1988 में बनी ‘रास्ते बंद हैं सब’ नामक फिल्म, जो दिल्ली विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग की डॉ. ज्योति गुप्ता के कार्य पर आधारित है, ने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता।
इसके अलावा ‘Dance With GODS’ नामक डॉक्युमेंट्री ने यहां के देवता पूजा और धार्मिक परंपराओं को बड़े ही खूबसूरती से दर्शाया है।
जौनसार-बावर क्षेत्र ने बॉलीवुड को एक प्रसिद्ध गायक भी दिया है — जूबिन नौटियाल, जो आज भारतीय संगीत जगत में एक लोकप्रिय नाम हैं।
जौनसार-बावर न केवल उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक है, बल्कि इसकी अनूठी सांस्कृतिक विरासत, परंपराएं, भाषा, वास्तुकला और जीवन शैली इसे एक समृद्ध और जीवंत क्षेत्र बनाती हैं। बाहरी दुनिया से लम्बे समय तक कटाव ने यहां के लोगों की संस्कृति को संरक्षित रखा है, जिससे यह क्षेत्र इतिहास, मानवशास्त्र और संस्कृतिशास्त्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है। यह क्षेत्र आज भी अपनी प्राचीन परंपराओं और जीवन शैली के साथ एक जिंदा संस्कृति के रूप में विद्यमान है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए अध्ययन और संरक्षण का विषय है।
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