
इगास बग्वाल 2025: उत्तराखंड का लोक पर्व, परंपरा और आस्था का अद्भुत संगम (Igas Bagwal 2025)
Igas Bagwal 2025: उत्तराखंड, जिसे देवभूमि कहा जाता है, अपने हर पर्व और त्यौहार में आस्था, लोकसंस्कृति और परंपरा का गहरा जुड़ाव रखता है। यहां के त्योहार सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि भावनाओं, विरासत और पहचान का प्रतीक होते हैं। ऐसा ही एक पर्व है इगास बग्वाल (Igas Bagwal) — जिसे कई जगहों पर इगास दिवाली (Igas Diwali), बूढ़ी दीपावली या छोटी बग्वाल भी कहा जाता है।
यह पर्व दीपावली के ठीक 11वें दिन, यानी कार्तिक शुक्ल एकादशी को मनाया जाता है। साल 2025 में इगास बग्वाल शनिवार, 1 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी। यह दिन पूरे उत्तराखंड के लिए बेहद खास होता है।
इगास बग्वाल क्या है? (What is Igas Bagwal in Uttarakhand?)
इगास उत्तराखंड का पारंपरिक लोक उत्सव है, जो दीपावली के 11 दिन बाद मनाया जाता है। इसे देवभूमि की अपनी दिवाली कहा जाता है। पर्व का मुख्य उद्देश्य है – सामूहिक उत्सव, भगवान श्रीराम की विजय का स्मरण, और अपने सैनिकों के गौरव को नमन करना।
कुमाऊं क्षेत्र में लोग इसे इगास दिवाली, जबकि गढ़वाल क्षेत्र में इसे इगास बग्वाल के नाम से जानते हैं। यह पर्व उत्तराखंड की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।
इगास का इतिहास और इसकी मान्यता (History of Igas Bagwal in Uttarakhand)
1. भगवान राम की विजय से जुड़ी कथा
प्रचलित मान्यता के अनुसार, जब भगवान श्रीराम चौदह वर्षों का वनवास पूर्ण कर लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या लौटे, तो वहां दीपों से उनका स्वागत किया गया। यह दिन दिवाली कहलाया। कहा जाता है कि हिमालय की वादियों में बसे कुमाऊं-गढ़वाल के लोगों को इस समाचार के बारे में 11 दिन बाद पता चला। जब सूचना पहुंची, तो लोगों ने उसी दिन दीप जलाकर भगवान राम की विजय का उत्सव मनाया। तभी से इस दिन को इगास बग्वाल या बूढ़ी दीपावली के नाम से मनाया जाने लगा।
2. माधो सिंह भंडारी की वीरता से जुड़ी कथा
एक अन्य ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार, टिहरी गढ़वाल के सेनापति वीर भद्र माधो सिंह भंडारी राजा महिपति शाह के अधीन कार्यरत थे। लगभग 400 वर्ष पहले, राजा ने उन्हें तिब्बत के साथ युद्ध के लिए भेजा था। उस दौरान दीपावली का पर्व आया, परन्तु सैनिकों की कोई खबर नहीं थी। लोगों ने यह मान लिया कि सभी वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं, इसलिए किसी ने दीपावली नहीं मनाई। लेकिन 11 दिन बाद माधो सिंह भंडारी अपनी सेना के साथ युद्ध जीतकर लौटे, तब पूरे राज्य में दीप जलाकर खुशी मनाई गई। यही परंपरा आगे चलकर इगास बग्वाल कहलाने लगी।
क्या IGAS उत्तराखंड में छुट्टी है? (Is IGAS a holiday in Uttarakhand?)
हाँ, उत्तराखंड सरकार द्वारा इगास पर्व पर राजकीय अवकाश घोषित किया जाता है। यह निर्णय राज्य सरकार ने स्थानीय संस्कृति और परंपरा को सम्मान देने के उद्देश्य से लिया। सरकारी दफ्तरों, विद्यालयों और अधिकांश संस्थानों में इस दिन छुट्टी रहती है। राज्य सरकार हर साल इस पर्व की अधिकृत तिथि (Igas Date) घोषित करती है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को पड़ती है।
इगास कैसे मनाया जाता है? (How is IGAS celebrated in Uttarakhand?)
इगास बग्वाल का जश्न देखने योग्य होता है। इस दिन पूरे उत्तराखंड में पारंपरिक गीत, नृत्य और पूजा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
1. पूजा और भोग की तैयारी
सुबह से ही घरों में तिल, भंगजीरा, हिसर, गुड़ और घी से बने मीठे व्यंजन तैयार किए जाते हैं। घरों की साफ-सफाई होती है और द्वारों पर दीप सजाए जाते हैं। लोग देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और आभार व्यक्त करते हैं कि पिछले वर्ष सुख-समृद्धि से बीता।
2. भैलो खेलना – पर्व की मुख्य विशेषता
इगास का सबसे रोमांचक हिस्सा है भैलो खेलना (Bhailo Khel)। भैलो तैयार करने के लिए चीड़ की सूखी लकड़ी, भंगजीरा के डंठल, और सूखी घास के छोटे-छोटे गठ्ठर बनाकर एक विशेष रस्सी से बांधे जाते हैं। शाम को पूजा के बाद इन्हें आग लगाकर घुमाया जाता है। लोग “भैलो रे भैलो, काखड़ी को रैलू, उज्यालू आलो अंधेरो भगलू” जैसे लोकगीत गाते हैं। बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी मिलकर इस लोकनृत्य का आनंद लेते हैं।
3. लोकगीत और लोकनृत्य
इस दिन चांछड़ी, झुमेलो, और ढोल-दमाऊं की गूंज से पूरा गांव झूम उठता है। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सजती हैं और लोकगीतों में वीरता, प्रेम और त्योहार की भावना को गाती हैं।
4. सामूहिक भोज और मेल-जोल
इगास का असली मज़ा शाम को होता है, जब गांव के लोग एकत्र होकर सामूहिक भोज करते हैं। भांग की चटनी, मंडुआ की रोटी, गहत की दाल और जंगली सब्जियां पारंपरिक भोजन का हिस्सा होती हैं। यह पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि समुदाय को जोड़ने का माध्यम है।
इगास बग्वाल और आधुनिक उत्तराखंड
आज के डिजिटल युग में भी इगास बग्वाल की परंपरा उतनी ही जीवंत है जितनी सदियों पहले थी। युवा पीढ़ी इसे अपनी सांस्कृतिक पहचान के रूप में अपनाती जा रही है। सोशल मीडिया पर हर साल “#IgasBagwal”, “#IgasDiwali” और “#BudhiDeepawali” जैसे ट्रेंड्स देखने को मिलते हैं। सरकार और स्थानीय संगठन भी इस पर्व को संस्कृति उत्सव (Cultural Festival) के रूप में बढ़ावा दे रहे हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ अपनी जड़ों से जुड़ी रहें।
इगास बग्वाल का सांस्कृतिक महत्व
इगास केवल एक पर्व नहीं बल्कि लोक जीवन की सादगी और सामाजिक एकता का प्रतीक है। जहाँ दीपावली में भौतिक प्रकाश का महत्व होता है, वहीं इगास बग्वाल मन के उजाले और आभार की भावना को दर्शाता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि देरी से मिली खुशी भी उतनी ही मधुर होती है, और सच्चे आनंद का अनुभव तब होता है जब पूरी समाज एक साथ मिलकर उसे मनाए।
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इगास बग्वाल 2025 की महत्वपूर्ण जानकारी
| विवरण | जानकारी | 
|---|---|
| पर्व का नाम | इगास बग्वाल (Igas Bagwal 2025) | 
| अन्य नाम | इगास दिवाली, बूढ़ी दीपावली, छोटी बग्वाल | 
| पर्व की तिथि | शनिवार, 1 नवंबर 2025 | 
| तिथि (हिंदू पंचांग) | कार्तिक शुक्ल एकादशी | 
| स्थान | सम्पूर्ण उत्तराखंड (गढ़वाल और कुमाऊं) | 
| प्रमुख आयोजन | पूजा-अर्चना, भैलो खेल, लोकगीत-नृत्य, सामूहिक भोज | 
| सरकारी अवकाश | हाँ, उत्तराखंड राज्य में राजकीय छुट्टी | 
| धार्मिक कारण | भगवान श्रीराम की विजय और वीर सैनिकों की वापसी की स्मृति | 
इगास बग्वाल 2025 उत्तराखंड के उन पर्वों में से एक है जो धार्मिक भावना, लोक संस्कृति और सामाजिक समरसता को एक साथ जोड़ता है।
यह पर्व हमें याद दिलाता है कि चाहे समय कितना भी बदल जाए, अपनी जड़ों से जुड़े रहना ही सच्ची समृद्धि है।
जब पूरा उत्तराखंड “भैलो रे भैलो” की धुन पर झूमता है, तो ऐसा लगता है जैसे देवभूमि एक स्वर में गा रही हो —
“उज्यालू आलो, अंधेरो भगलू।”
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