
गढ़वाली भाषा क्या है? (Garhwali Language)
Garhwali Language in Hindi: गढ़वाली भाषा (गढ़वळि) उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र की आत्मा है। यह केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि गढ़वाल की संस्कृति, लोकजीवन, इतिहास, संघर्ष और स्मृतियों की जीवित धरोहर है। गढ़वाली एक इंडो-आर्यन भाषा है, जो Central Pahari भाषा समूह से संबंधित है और देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 24–25 लाख लोग गढ़वाली भाषा बोलते हैं। यह भाषा टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग और देहरादून ज़िलों में प्रमुख रूप से बोली जाती है, साथ ही दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे राज्यों में बसे गढ़वाली प्रवासियों के बीच भी जीवित है।
गढ़वाली भाषा का उद्गम और इतिहास
प्राकृत से आधुनिक गढ़वाली तक
भाषा वैज्ञानिक मानते हैं कि गढ़वाली भाषा का उद्गम खस प्राकृत (Khas Prakrit) से हुआ है। मध्य इंडो-आर्यन काल में जब अलग-अलग प्राकृत भाषाएँ विकसित हो रही थीं, तब हिमालयी क्षेत्र में खस जनजाति की भाषा ने धीरे-धीरे गढ़वाली का रूप लिया। 10वीं शताब्दी से गढ़वाली भाषा के प्रमाण मिलते हैं—
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ताम्रपत्र (Copper Plates)
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मंदिर शिलालेख
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राजकीय आदेश और मुहरें
1335 ईस्वी में देवप्रयाग में राजा जगतपाल का शिलालेख गढ़वाली भाषा का ऐतिहासिक प्रमाण माना जाता है।
गढ़वाल राज्य और गढ़वाली भाषा
17वीं शताब्दी तक गढ़वाल एक स्वतंत्र राज्य था और उस समय गढ़वाली आम जनता की भाषा थी, जबकि संस्कृत दरबार और धर्म की भाषा मानी जाती थी। गढ़वाल राज्य के राजाओं के समय में गढ़वाली का प्रयोग प्रशासनिक और सामाजिक स्तर पर होता रहा।
भाषाई पहचान और वैकल्पिक नाम
Ethnologue के अनुसार गढ़वाली को कई नामों से जाना जाता है:
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गढ़वळि
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गढ़वाली
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गढ़वाला
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गढ़वाली पहाड़ी
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गधवाली
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गिरवाली
हालाँकि “गढ़वळि” ही इसका सबसे प्रामाणिक और स्थानीय नाम माना जाता है।
गढ़वाली भाषा का भौगोलिक विस्तार
उत्तराखंड में
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टिहरी गढ़वाल
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पौड़ी गढ़वाल
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उत्तरकाशी
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चमोली
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रुद्रप्रयाग
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देहरादून
उत्तराखंड से बाहर
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दिल्ली – 70,000+
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उत्तर प्रदेश
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महाराष्ट्र
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हरियाणा
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पंजाब
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हिमाचल प्रदेश
प्रवास के बावजूद गढ़वाली भाषा घरों में, लोकगीतों में और सांस्कृतिक आयोजनों में आज भी जीवित है।
गढ़वाली भाषा की बोलियाँ (Dialects of Garhwali)
गढ़वाली एकरूप भाषा नहीं, बल्कि बोलियों का परिवार है। प्रमुख बोलियाँ:
1. श्रीनगरिया
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मानक गढ़वाली मानी जाती है
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साहित्य और शिक्षा में अधिक प्रयोग
2. टिहरीयाली
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सबसे अधिक बोली जाने वाली बोली
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श्रीनगरिया से काफ़ी मिलती-जुलती
3. राठवाली
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चंद्रपुर और देवलगढ़ क्षेत्र
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खसियों की भाषा
4. बांगाणी
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मोरी क्षेत्र
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भाषावैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण
5. जौनपुरी
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टिहरी और जौनसार क्षेत्र
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गढ़वाली और जौनसारी के बीच सेतु
इनके अलावा नागपुरिया, गंगाड़ी, रावनल्टी, परवती जैसी कई उपबोलियाँ भी हैं।
गढ़वाली भाषा की संरचना (Grammar & Morphology)
सर्वनाम (Pronouns)
| व्यक्ति | उदाहरण |
|---|---|
| मैं | मी |
| तुम | तु / तीमी |
| वह | सु / वे |
| हम | आमि |
गढ़वाली में कारक, विभक्ति और प्रत्यय अत्यंत समृद्ध हैं, जो इसे हिंदी से अलग पहचान देते हैं।
ध्वन्यात्मक विशेषताएँ (Phonology)
गढ़वाली भाषा की सबसे बड़ी पहचान है रेट्रोफ्लेक्स लॅटरल “ळ (ɭ)”, जो हिंदी में नहीं मिलता।
स्वर (Vowels)
गढ़वाली में लगभग 13 स्वर माने जाते हैं, जिनमें कुछ स्वर निर्वाच्य (voiceless) भी होते हैं—यह विशेषता इसे वैदिक परंपरा से जोड़ती है।
व्यंजन (Consonants)
गढ़वाली में:
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दन्त्य
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मूर्धन्य
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तालव्य
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कंठ्य
सभी प्रकार के व्यंजन पाए जाते हैं।
गढ़वाली भाषा के उदाहरण (Common Phrases)
| गढ़वाली | हिंदी अर्थ |
|---|---|
| ढकुली | नमस्कार |
| कख? | कहाँ? |
| कन? | कैसे? |
| कु? | कौन? |
| त्यार नौं क्या च? | तुम्हारा नाम क्या है? |
गढ़वाली भाषा और साहित्य
लोक से आधुनिक साहित्य तक
प्रारंभ में गढ़वाली साहित्य लोकगीतों, कथाओं और कहावतों तक सीमित था।
20वीं शताब्दी में आधुनिक साहित्य का विकास हुआ।
प्राचीन कृतियाँ
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रंच जुद्या जुदिगे – जयदेव बहुगुणा
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सभासार – राजा सुदर्शन शाह
आधुनिक साहित्य
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कविता
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नाटक
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कहानी
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उपन्यास
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व्यंग्य
प्रसिद्ध गढ़वाली लेखक
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सुदामा प्रसाद ‘प्रेमी’
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प्रेेमलाल भट्ट
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अभोद बंधु बहुगुणा
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नरेंद्र कठैत
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विशालमणि नैथानी
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लीला धर जगूड़ी (पद्मश्री)
मीडिया और सिनेमा में गढ़वाली
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नरेंद्र सिंह नेगी
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प्रीतम भरतवाण
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मीना राणा
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रोहित चौहान
गढ़वाली गीतों ने भाषा को नई पीढ़ी तक पहुँचाया है।
गढ़वाली भाषा संकट में क्यों है?
UNESCO ने गढ़वाली को “Vulnerable Language” की श्रेणी में रखा है।
मुख्य कारण
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स्कूलों में पढ़ाई नहीं
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सरकारी कामकाज में प्रयोग नहीं
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पलायन
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हिंदी और अंग्रेज़ी का दबाव
आधिकारिक मान्यता की लड़ाई
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8वीं अनुसूची में शामिल करने की माँग
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विश्वविद्यालयों में विभाग की स्थापना
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प्राथमिक स्कूलों में पाठ्यपुस्तकें
हालाँकि प्रयास हुए हैं, लेकिन अभी मंज़िल दूर है।
गढ़वाली भाषा का भविष्य
गढ़वाली भाषा का भविष्य हमारे हाथ में है। अगर भाषा घर में बोली जाएगी, गीतों में गूँजेगी, किताबों में लिखी जाएगी और डिजिटल दुनिया में दिखेगी—तो यह भाषा कभी नहीं मरेगी। गढ़वाली भाषा केवल शब्दों का समूह नहीं, यह गढ़वाल की पहचान, आत्मा और स्मृति है। जो समाज अपनी भाषा बचा लेता है, वही अपना अस्तित्व भी बचा लेता है।