
Dairy Industry in Uttarakhand in Hindi: जानें उत्तराखण्ड में पशुपालन और डेयरी उद्योग के बारें में
Dairy Industry in Uttarakhand in Hindi: उत्तराखण्ड सरकार द्वारा पशुपालन को सुदृढ़ बनाने हेतु अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। आधुनिक तकनीक, अनुसंधान, प्रशिक्षण और संस्थागत ढांचे के माध्यम से न केवल ग्रामीण रोजगार सृजन हो रहा है, बल्कि दुग्ध उत्पादन और पशुधन की गुणवत्ता में भी निरंतर सुधार देखा जा रहा है।
पशुपालन, कृषि के साथ जुड़ी एक महत्वपूर्ण सहायक गतिविधि है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। यह कार्य अब पारंपरिक रूप से नहीं, बल्कि व्यावसायिक स्तर पर किया जा रहा है।
पशुधन की स्थिति:
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वर्ष 2019 की 20वीं पशुधन गणना के अनुसार, उत्तराखण्ड में कुल पशुधन संख्या 46,36,643 है।
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भारत में पहली पशुधन गणना 1919-20 में हुई थी। तब से हर 5 वर्षों के अंतराल में यह गणना की जाती है।
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2012 की तुलना में 2019 में पशुधन आबादी में 4.6% की वृद्धि दर्ज की गई, जिससे देश की कुल पशुधन संख्या 535.78 मिलियन हो गई।
उत्तराखण्ड में डेयरी उद्योग और पशुधन विकास
उत्तराखण्ड में डेयरी और पशुधन विकास को बढ़ावा देने के लिए कई संस्थानों और परियोजनाओं की स्थापना की गई है:
प्रमुख संस्थान और उनके स्थान:
संस्था / परियोजना | स्थान |
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उत्तराखण्ड पशुधन विकास बोर्ड (स्थापना: 2002-03) | मुख्यालय – देहरादून |
भ्रूण जैव-प्रौद्योगिकी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र | कालसी |
प्रशिक्षण केन्द्र | ऋषिकेश |
गौ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान | पशुलोक, ऋषिकेश |
अतिहिमकृत वीर्य केन्द्र | श्यामपुर, देहरादून |
चिकित्सीय जांच प्रयोगशालाएँ | पौड़ी और नैनीताल |
चारा बैंक | पशुलोक (ऋषिकेश) और पंतनगर |
राजकीय अश्व एवं गर्दभ प्रजनन इकाइयाँ | पशुलोक और कालाढूंगी |
प्रमुख योजनाएं और कार्यक्रम:
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गौ सेवा आयोग: गौ वंशीय पशुओं के संरक्षण के लिए गठित।
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अभिनव संकर परियोजना: उच्च नस्लों के विकास हेतु क्रॉस ब्रीडिंग (Cross Breeding) कार्यक्रम।
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उत्तराखण्ड चारा विकास परियोजना: राज्य के 11 जिलों की एक-एक वन पंचायत में प्रारंभ।
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चारा शोध प्रक्षेत्र: भैंसवाड़ा (अल्मोड़ा) और पशुलोक (ऋषिकेश) को घोषित किया गया।
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राष्ट्रीय कैटल एवं बफैलो ब्रीडिंग प्रोजेक्ट: प्रारंभ वर्ष 2002-03।
डेयरी विकास कार्यक्रम (Dairy Development Programme)
उत्तराखण्ड में डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई संगठनों और योजनाओं की स्थापना की गई है। राज्य में डेयरी दुग्ध संघ की शुरुआत सबसे पहले 1949 में हल्द्वानी में हुई थी। इसके बाद डेयरी विकास को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश, जिला और ग्राम स्तर पर विभिन्न संस्थाएं बनाईं गईं।
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प्रदेश स्तर पर: उत्तराखण्ड सहकारी डेयरी फेडरेशन की स्थापना 12 मार्च 2001 को हल्द्वानी के मंगल पड़ाव में की गई।
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जिला स्तर पर: दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ बनाए गए।
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ग्राम स्तर पर: दुग्ध समितियों का गठन किया गया।
दुग्ध भंडारण सुविधाएं
आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, राज्य में दुग्ध भंडारण के लिए 45 दुग्ध अवशीतलन केंद्र स्थापित किए गए हैं।
पशुपालन से जुड़ी स्थानीय बातें
पर्वतीय क्षेत्रों, खासकर कुमाऊं और गढ़वाल में, दुधारू पशुओं को स्थानीय भाषा में “धिनाली” कहा जाता है। पशुपालन, कृषि और डेयरी विकास में सबसे बड़ा योगदान महिलाओं का है। यहाँ की गायों को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से “सर्वदेवमयी गाय” के नाम से जाना जाता है।
संरक्षण और नियमावली
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उत्तराखण्ड में गौ वंश संरक्षण अधिनियम 2007 लागू किया गया, जिसकी अधिसूचना 19 जुलाई 2007 को जारी हुई।
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वर्ष 2015 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया।
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वर्ष 2011 में राज्य की गौ संरक्षण नियमावली भी जारी की गई।
डेयरी सुविधाएं और सहायता
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राज्य में मिल्क पाउडर प्लांट रूद्रपुर (उत्तराखण्ड कृषि विश्वविद्यालय) में स्थित है।
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डेयरी शोध एवं विकास संस्थान नैनीताल में कार्यरत है।
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दुधारू पशुओं को खरीदने पर सरकार 50% तक अनुदान प्रदान करती है।
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डेयरी विकास हेतु राज्य की योजनाएं
उत्तराखण्ड सरकार ने विशेष रूप से महिलाओं को डेयरी उद्योग से जोड़ने और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। राज्य की अधिकांश महिलाएं पशुपालन व्यवसाय से जुड़ी हुई हैं, जिससे उन्हें आत्मनिर्भर और स्वरोजगार का अवसर मिलता है।
स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups – SHGs)
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महिलाओं में बचत और स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु 2001-02 में महिला दुग्ध समितियों के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों की शुरुआत की गई।
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आज राज्य में 850 से अधिक ऐसे समूह सक्रिय हैं।
समन्वित डेयरी विकास परियोजना (Integrated Dairy Development Project)
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दुग्ध विकास कार्यक्रम को मजबूत और विस्तारित करने के लिए, भारत सरकार के सहयोग से 2002-03 में यह परियोजना प्रारंभ की गई।
मिनी डेयरी योजना (Mini Dairy Scheme)
उत्तराखण्ड में वर्ष 2000-01 से मिनी डेयरी योजना संचालित की जा रही है, जिसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार के अवसर प्रदान करना है। इस योजना के तहत दुग्ध उत्पादकों को पशुपालन और दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में प्रशिक्षण दिया जाता है।
योजना के अंतर्गत, दुधारू पशुओं की खरीद पर सरकार की ओर से अनुदान भी प्रदान किया जाता है।
महिला डेयरी विकास परियोजना (Women Dairy Development Project)
इस परियोजना का भी संचालन 2000-01 से किया जा रहा है, जो महिलाओं को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने और उन्हें सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कार्यरत है।
ग्राम स्तर पर महिला सहकारी दुग्ध समितियों का गठन किया गया है।
28 दिसंबर 2017 से राज्य में गंगा गाय महिला डेयरी योजना भी चलाई जा रही है।
समिति संगठन के लिए प्रथम, द्वितीय और तृतीय वर्ष में क्रमशः ₹53,200, ₹18,000 और ₹15,800 की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।
आंचल ब्राण्ड (Aanchal Brand)
उत्तर प्रदेश के पराग ब्राण्ड की तरह, उत्तराखण्ड में आंचल ब्राण्ड के तहत दुग्ध और दुग्ध पदार्थों की आपूर्ति की जाती है।
भेड़ एवं ऊन विकास (Sheep and Wool Development)
भेड़ एवं ऊन विकास के लिए राज्य में भेड़ एवं ऊन विकास बोर्ड की स्थापना की गई है।
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2004-05 में एकीकृत ऊन विकास कार्यक्रम शुरू किया गया।
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पौढ़ी में सघन भेड़ विकास परियोजना संचालित है।
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ऋषिकेश के पशुलोक में ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला तथा टिहरी के मुनि की रेती में ऊन श्रेणीकरण और क्रय-विक्रय केन्द्र स्थापित हैं।
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अंगोरा बकरी पालन को बढ़ावा देने के लिए ग्वालदम, कोपड़धार (टिहरी), लमगड़ा और ताड़ीखेत (अल्मोड़ा), एवं चंपावत में अंगोरा बकरी प्रजनन केंद्र कार्यरत हैं।
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ग्वालदम में अंगोरा बकरी विकास एवं ऊन उत्पादन हेतु एक राजकीय प्रक्षेत्र भी है।
रेशम विकास (Silk Development)
उत्तराखण्ड में रेशम विकास को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखण्ड को-ऑपरेटिव रेशम फेडरेशन की स्थापना 2006 में की गई।
राज्य में मलवरी, टसर, मूंगा और ऐरी रेशम का उत्पादन होता है।
इसके अलावा, मणिपुरी बांस से भी रेशम का उत्पादन किया जा रहा है।
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रेजिन उद्योग (Resin Industry)
चीड़ के पेड़ से प्राप्त तरल पदार्थ जिसे लीसा कहा जाता है, से तारपीन तेल, गोंद और चिपकने वाली सामग्री बनायी जाती हैं।
इस उद्योग का उद्देश्य जंगलों की कटाई को रोकना और स्थानीय लोगों को स्वरोजगार प्रदान करना है।
मत्स्य नीति (Fisheries Policy)
उत्तराखण्ड भारत का पहला ऐसा राज्य है जिसने मत्स्य पालन नीति लागू की।
यह नीति वर्ष 2002 में लागू की गई थी।
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मछुआ सहकारी समितियों के सदस्यों के लिए दुर्घटना बीमा योजना 1985 से चल रही है, जिसमें 50% प्रीमियम भारत सरकार देती है।
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मछुआरों के लिए नेशनल फिशरमैन वेलफेयर फंड भी बनाया गया है।
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महाशीर मत्स्य विकास परियोजना नैनीताल के भीमताल में संचालित है।
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उत्तराखण्ड मत्स्य विकास प्राधिकरण की स्थापना भी की गई है।
कुक्कुट और सूकर विकास (Poultry and Swine Development)
राज्य में कुक्कुट विकास हेतु तीन सरकारी कुक्कुट प्रक्षेत्र संचालित हैं:
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ऋषिकेश (पशुलोक),
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अल्मोड़ा (हवालबाग),
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पिथौरागढ़ (विण)।
सूकर विकास के लिए दो राजकीय सूकर प्रक्षेत्र हैं:
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पशुलोक और
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काशीपुर।
इसके अलावा, राज्य के आठ जनपदों में सघन कुक्कुट विकास परियोजनाएं प्रारंभ की गई हैं।
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