
aditya hridya Strotram in Hindi: जानें आदित्य हृदय स्तोत्रम के लाभ के बारें में
aditya hridya Strotram in Hindi: भारतीय सनातन परंपरा में सूर्य देव को प्रत्यक्ष देवता माना गया है, जिनकी पूजा और आराधना से व्यक्ति को आरोग्यता, तेज, बल, यश और समृद्धि की प्राप्ति होती है। वे जगत के पालक हैं, प्रकाश के स्रोत हैं और जीवन के आधार हैं। सूर्य देव की महिमा का वर्णन अनेक प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में मिलता है, और उन्हीं में से एक अत्यंत शक्तिशाली और प्रसिद्ध स्तोत्र है – “आदित्य हृदय स्तोत्रम”। यह स्तोत्र केवल एक प्रार्थना नहीं, बल्कि एक दिव्य कवच है, जिसे स्वयं अगस्त्य ऋषि ने भगवान राम को युद्ध भूमि में रावण से युद्ध करते समय विजय प्राप्त करने के लिए प्रदान किया था।
यह लेख आदित्य हृदय स्तोत्रम के महत्व, उसके पाठ के लाभ, पाठ विधि, उससे जुड़ी पौराणिक कथा और वर्तमान जीवन में इसकी प्रासंगिकता पर विस्तृत प्रकाश डालेगा, जिससे यह पाठकों के लिए एक व्यापक और उपयोगी मार्गदर्शिका बन सके।
आदित्य हृदय स्तोत्रम का उद्भव: एक पौराणिक कथा
आदित्य हृदय स्तोत्रम की उत्पत्ति रामायण काल से जुड़ी हुई है। लंका में रावण से युद्ध करते हुए भगवान राम अत्यधिक थक चुके थे और उन्हें विजय प्राप्त करने में कठिनाई महसूस हो रही थी। उस समय, देवर्षि अगस्त्य मुनि ने भगवान राम के पास आकर उन्हें यह स्तोत्र प्रदान किया।
कथा इस प्रकार है:
जब भगवान राम और रावण के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था, तब भगवान राम युद्ध के कारण अत्यंत क्लांत और चिंतित थे। वे विचार कर रहे थे कि रावण जैसे पराक्रमी राक्षस को कैसे पराजित किया जाए। उसी समय, अगस्त्य ऋषि देवताओं के साथ वहां प्रकट हुए। उन्होंने भगवान राम से कहा, “हे राम! तुम युद्ध में थक चुके हो और चिंतित हो। मैं तुम्हें एक ऐसा गोपनीय, शाश्वत और शक्तिशाली स्तोत्र बताता हूं, जिसके जप से तुम शीघ्र ही विजय प्राप्त करोगे और शत्रु का नाश कर सकोगे।”
अगस्त्य ऋषि ने भगवान राम को आदित्य हृदय स्तोत्रम का उपदेश दिया और उन्हें सूर्य देव की उपासना करने का निर्देश दिया। भगवान राम ने ऋषि के वचनों पर विश्वास किया और एकाग्र मन से इस स्तोत्र का तीन बार पाठ किया। स्तोत्र पाठ के उपरांत भगवान राम के शरीर में अद्भुत तेज, ऊर्जा और बल का संचार हुआ। वे पुनः युद्ध में उतरे और कुछ ही समय में रावण का वध कर दिया, जिससे धर्म की विजय हुई।
यह कथा इस स्तोत्र की अद्वितीय शक्ति और महत्व को दर्शाती है। यह बताता है कि कैसे यह स्तोत्र सबसे कठिन परिस्थितियों में भी विजय और सफलता दिला सकता है।
आदित्य हृदय स्तोत्रम: अर्थ और संरचना
“आदित्य हृदय” का अर्थ है “सूर्य का हृदय” या “सूर्य का सार”। यह स्तोत्र मुख्य रूप से 31 या 32 श्लोकों का संग्रह है, जो संस्कृत भाषा में रचित है। इन श्लोकों में सूर्य देव के विभिन्न नामों, गुणों, स्वरूपों और शक्तियों का विस्तृत वर्णन किया गया है। प्रत्येक श्लोक सूर्य देव की महिमा और उनके विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है।
इस स्तोत्र की संरचना को मोटे तौर पर चार भागों में बांटा जा सकता है:
- पूर्वपीठिका (प्रस्तावना): इस भाग में अगस्त्य ऋषि भगवान राम को स्तोत्र के बारे में बताते हैं और उसके महत्व पर प्रकाश डालते हैं।
- स्तोत्र पाठ (सूर्य देव का गुणगान): यह मुख्य भाग है, जिसमें सूर्य देव के विभिन्न नामों, स्वरूपों, शक्तियों और गुणों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें उन्हें ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इंद्र, वरुण, यम, कुबेर आदि विभिन्न देवताओं के रूप में भी वर्णित किया गया है, जो उनकी सर्वव्यापकता को दर्शाता है।
- फलश्रुति (पाठ के लाभ): इस भाग में स्तोत्र के पाठ से प्राप्त होने वाले लाभों का वर्णन किया गया है, जैसे विजय, आरोग्य, भय से मुक्ति, पापों का नाश आदि।
- उपसंहार (समाप्ति): यह स्तोत्र का अंतिम भाग है, जिसमें सूर्य देव को प्रणाम किया जाता है और उनके आशीर्वाद की कामना की जाती है।
आदित्य हृदय स्तोत्रम के पाठ के लाभ
आदित्य हृदय स्तोत्रम का नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ करने से व्यक्ति को अनेक भौतिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं:
- शत्रु पर विजय: यह स्तोत्र का सबसे महत्वपूर्ण लाभ है। जैसा कि पौराणिक कथा में बताया गया है, यह शत्रु पर विजय दिलाने में अत्यंत प्रभावी है। यह न केवल बाहरी शत्रुओं बल्कि आंतरिक शत्रुओं जैसे क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि पर भी विजय दिलाता है।
- आत्मविश्वास में वृद्धि: सूर्य देव तेज और प्रकाश के प्रतीक हैं। उनके स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति में आत्मविश्वास, सकारात्मकता और आंतरिक शक्ति का संचार होता है।
- उत्तम स्वास्थ्य और आरोग्यता: सूर्य देव आरोग्य के देवता हैं। उनके स्तोत्र का पाठ करने से विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है और शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है। विशेषकर नेत्र संबंधी रोगों और त्वचा संबंधी समस्याओं में यह अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
- तेज और ओज में वृद्धि: सूर्य देव का सीधा संबंध व्यक्ति के तेज, ओज और आभा से है। स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के चेहरे पर चमक आती है और उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है।
- ज्ञान और बुद्धि का विकास: सूर्य देव ज्ञान के भी दाता हैं। उनके स्तोत्र का पाठ करने से बुद्धि तीव्र होती है, एकाग्रता बढ़ती है और व्यक्ति को सही निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
- भय और चिंता से मुक्ति: यह स्तोत्र सभी प्रकार के भय, चिंता और नकारात्मक विचारों को दूर करने में सहायक है। यह मानसिक शांति प्रदान करता है।
- सरकारी कार्यों में सफलता: ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को सरकार और सत्ता का कारक ग्रह माना जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से सरकारी कार्यों में सफलता मिलती है और उच्च अधिकारियों का सहयोग प्राप्त होता है।
- नेतृत्व क्षमता का विकास: सूर्य नेतृत्व और प्रशासन का प्रतीक है। स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति में नेतृत्व क्षमता का विकास होता है और वह एक सफल नेता बन पाता है।
- यश और सम्मान की प्राप्ति: सूर्य देव यश और प्रसिद्धि के भी कारक हैं। उनके स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को समाज में सम्मान और प्रसिद्धि मिलती है।
- पिता से संबंधों में सुधार: ज्योतिष में सूर्य पिता का भी कारक होता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से पिता के साथ संबंधों में सुधार आता है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: यह स्तोत्र केवल भौतिक लाभ ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक विकास में भी सहायक है। यह व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करता है और मोक्ष प्राप्ति में सहायता करता है।
- नकारात्मक ऊर्जा का नाश: स्तोत्र का पाठ करने से घर और आसपास की नकारात्मक ऊर्जाएं दूर होती हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
आदित्य हृदय स्तोत्रम: पाठ विधि
आदित्य हृदय स्तोत्रम का पाठ करने की एक विशिष्ट विधि है, जिसका पालन करने से अधिकतम लाभ प्राप्त होते हैं:
- शुभ समय: इस स्तोत्र का पाठ करने का सबसे शुभ समय ब्रह्म मुहूर्त (सूर्य उदय से पहले का समय) या सूर्योदय के समय होता है। यह सुबह स्नान के बाद करना चाहिए।
- शुद्धता: पाठ करने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन और शरीर दोनों की शुद्धता आवश्यक है।
- स्थान: पूजा के लिए एक शांत और पवित्र स्थान का चुनाव करें। यह आपका पूजा घर या कोई अन्य शांत कोना हो सकता है।
- आसन: एक साफ आसन पर बैठें। प्राथमिकता दें कि आसन कुशा या ऊन का बना हो।
- दिशा: पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें, क्योंकि सूर्य देव पूर्व दिशा से ही उदित होते हैं।
- जल अर्पण: पाठ शुरू करने से पहले, तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें थोड़ा लाल चंदन, लाल फूल और अक्षत (चावल) डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय ‘ॐ घृणि सूर्याय नमः’ मंत्र का जाप कर सकते हैं।
- संकल्प: पाठ शुरू करने से पहले, सूर्य देव का ध्यान करते हुए अपनी मनोकामना का संकल्प लें। यह संकल्प स्पष्ट और सकारात्मक होना चाहिए।
- ध्यान: सूर्य देव का ध्यान करें। उनके तेजमय स्वरूप का मन ही मन चिंतन करें: सात घोड़ों वाले रथ पर सवार, रक्तवर्ण, तेजस्वी सूर्य देव, जिनके हाथ में कमल है और जो सभी प्राणियों को जीवन प्रदान करते हैं।
- दीप प्रज्ज्वलन: पूजा स्थान पर घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें।
- पुष्प और प्रसाद: सूर्य देव को लाल रंग के फूल (जैसे गुड़हल) विशेष रूप से प्रिय हैं। उन्हें लाल चंदन, कुमकुम और अक्षत अर्पित करें। गुड़ और गेहूं से बने प्रसाद भी अर्पित कर सकते हैं।
- आरंभ: अब आदित्य हृदय स्तोत्रम का पाठ शुरू करें। स्तोत्र का पाठ स्पष्ट उच्चारण और पूरे श्रद्धा भाव से करें। यदि आप संस्कृत नहीं जानते हैं, तो हिंदी अनुवाद के साथ पाठ कर सकते हैं, लेकिन उच्चारण शुद्ध रखने का प्रयास करें।
- संख्या: आप अपनी सुविधानुसार स्तोत्र का एक, तीन, ग्यारह या इक्कीस बार पाठ कर सकते हैं। यदि समय की कमी हो, तो कम से कम एक बार अवश्य करें। यदि किसी विशेष मनोकामना के लिए कर रहे हैं, तो 40 दिन तक नियमित पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
- समाप्ति: पाठ समाप्त होने के बाद, सूर्य देव से अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करें और अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करें।
- आरती: अंत में सूर्य देव की आरती करें।
- प्रसाद वितरण: आरती के बाद, भोग को प्रसाद के रूप में सभी में वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें।
जानें अन्नपूर्णा स्तोत्रम से मिलने वाले लाभ के बारें में
आदित्य हृदय स्तोत्रम:
‘आदित्यहृदय स्तोत्र’
विनियोग
ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः, आदित्यहृदयभूतो
भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।
ऋष्यादिन्यास
ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि। अनुष्टुपछन्दसे नमः, मुखे। आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः हृदि।
ॐ बीजाय नमः, गुह्ये। रश्मिमते शक्तये नमः, पादयो:। ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः नाभौ।
करन्यास
ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः। ॐ विवस्वते अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि अंगन्यास
ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः। ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा। ॐ देवासुरनमस्कृताय शिखायै वषट्।
ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट्। ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्।
इस प्रकार न्यास करके निम्नांकित मंत्र से भगवान सूर्य का ध्यान एवं नमस्कार करना चाहिए-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
आदित्यहृदय स्तोत्र
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
उधर श्री रामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिन्ता करते हुए रणभूमि में खड़े थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया। यह देख भगवान अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
‘सबके हृदय में रमण करने वाले महाबाहो राम ! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो। वत्स ! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे।’
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥
सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥5॥
‘इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है ‘आदित्यहृदय’। यह परम पवित्र और सम्पूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्ष्य और परम कल्याणमय स्तोत्र है। सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिन्ता और शोक को मिटाने तथा आयु को बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।’
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥
‘भगवान सूर्य अपनी अनन्त किरणों से सुशोभित (रश्मिमान्) हैं। ये नित्य उदय होने वाले (समुद्यन्), देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान् नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करने वाले (भास्कर) और संसार के स्वामी (भुवनेश्वर) हैं। तुम इनका (रश्मिमते नमः, समुद्यते नमः, देवासुरनमस्कताय नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराय नमः इन नाम मंत्रों के द्वारा) पूजन करो।’
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: ।
एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥7॥
‘सम्पूर्ण देवता इन्हीं के स्वरूप हैं। ये तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं। ये ही अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित सम्पूर्ण लोकों का पालन करते हैं।’
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥
पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥
‘ये ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरूण, पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रभा के पुंज हैं।’
आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥
हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: ।
अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:।
कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥
‘इन्हीं के नाम आदित्य (अदितिपुत्र), सविता (जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य (सर्वव्यापक), खग (आकाश में विचरने वाले), पूषा (पोषण करने वाले), गभस्तिमान् (प्रकाशमान), सुर्वणसदृश, भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बीज), दिवाकर (रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले), हरिदश्व (दिशाओं में व्यापक अथवा हरे रंग के घोड़े वाले), सहस्रार्चि (हजारों किरणों से सुशोभित), तिमिरोन्मथन (अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू (कल्याण के उदगमस्थान), त्वष्टा (भक्तों का दुःख दूर करने अथवा जगत का संहार करने वाले), अंशुमान (किरण धारण करने वाले), हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), शिशिर (स्वभाव से ही सुख देने वाले), तपन (गर्मी पैदा करने वाले), अहरकर (दिनकर), रवि (सबकी स्तुति के पात्र), अग्निगर्भ (अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख (आनन्दस्वरूप एवं व्यापक), शिशिरनाशन (शीत का नाश करने वाले), व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमोभेदी (अन्धकार को नष्ट करने वाले), ऋग, यजुः और सामवेद के पारगामी, घनवृष्टि (घनी वृष्टि के कारण), अपां मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विन्ध्यीथीप्लवंगम (आकाश में तीव्रवेग से चलने वाले), आतपी (घाम उत्पन्न करने वाले), मण्डली (किरणसमूह को धारण करने वाले), मृत्यु (मौत के कारण), पिंगल (भूरे रंग वाले), सर्वतापन (सबको ताप देने वाले), कवि (त्रिकालदर्शी), विश्व (सर्वस्वरूप), महातेजस्वी, रक्त (लाल रंगवाले), सर्वभवोदभव (सबकी उत्पत्ति के कारण), नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन (जगत की रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी तथा द्वादशात्मा (बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त) हैं। (इन सभी नामों से प्रसिद्ध सूर्यदेव !) आपको नमस्कार है।’
नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥
‘पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरि अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।’
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: ।
नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥
‘आप जय स्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता है। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान सूर्य ! आपको बारंबार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से प्रसिद्ध है, आपको नमस्कार है।’
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ।
नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
‘(परात्पर रूप में) आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी हैं। सूर आपकी संज्ञा हैं, यह सूर्यमण्डल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आपका ही स्वरूप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।’
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥
‘आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं, आपका स्वरूप अप्रमेय है। आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, सम्पूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।’
तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
‘आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरि (अज्ञान का हरण करने वाले) और विश्वकर्मा (संसार की सृष्टि करने वाले) हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है।’
नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
‘रघुनन्दन ! ये भगवान सूर्य ही सम्पूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। ये ही अपनी किरणों से गर्मी पहुँचाते और वर्षा करते हैं।’
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23॥
‘ये सब भूतों में अन्तर्यामीरूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।’
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
‘(यज्ञ में भाग ग्रहण करने वाले) देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। सम्पूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं, उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं।’
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
‘राघव ! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।’
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् ।
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
‘इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजा करो। इस आदित्य हृदय का तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।’
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥
‘महाबाहो ! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे।’ यह कहकर अगस्त्य जी जैसे आये थे, उसी प्रकार चले गये।
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥
धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥28॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥
उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान सूर्य की ओर देखते हुए इसका तीन बार जप किया। इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। फिर परम पराक्रमी रघुनाथजी ने धनुष उठाकर रावण की ओर देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥
उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की ओर देखा और निशाचराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा ‘रघुनन्दन ! अब जल्दी करो’।
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इति श्रीवाल्मीकीये रामायणे युद्धकाण्डे अगस्त्यप्रोक्तमादित्यहृदयस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
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वर्तमान जीवन में आदित्य हृदय स्तोत्रम की प्रासंगिकता
आज के आधुनिक युग में भी आदित्य हृदय स्तोत्रम की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है, बल्कि कई मायनों में यह और भी बढ़ गई है।
- तनाव और चिंता मुक्ति: आधुनिक जीवनशैली में तनाव और चिंता एक आम समस्या है। यह स्तोत्र मानसिक शांति प्रदान करता है और नकारात्मकता को दूर करता है।
- स्वास्थ्य संबंधी लाभ: प्रदूषण और अस्वस्थ जीवनशैली के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं। सूर्य देव की कृपा से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और व्यक्ति स्वस्थ रहता है।
- आत्मविश्वास और नेतृत्व: प्रतिस्पर्धा भरे माहौल में आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता का होना अत्यंत आवश्यक है। यह स्तोत्र इन गुणों को विकसित करने में सहायक है।
- सकारात्मक ऊर्जा: स्तोत्र का पाठ करने से घर और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो सुख-शांति और समृद्धि लाता है।
- लक्ष्य प्राप्ति: जीवन में लक्ष्य निर्धारित करना और उन्हें प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास करना महत्वपूर्ण है। यह स्तोत्र हमें ऊर्जा और दृढ़ता प्रदान करता है ताकि हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें।
कुछ महत्वपूर्ण बातें और सावधानियां
- श्रद्धा और विश्वास: स्तोत्र का पाठ करते समय पूर्ण श्रद्धा और विश्वास होना अत्यंत आवश्यक है।
- नियमितता: अधिकतम लाभ के लिए स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए।
- शुद्ध उच्चारण: यदि संभव हो, तो शुद्ध उच्चारण के साथ पाठ करें। यदि संस्कृत का ज्ञान न हो, तो हिंदी अनुवाद के साथ भी पाठ कर सकते हैं, लेकिन भाव शुद्ध होना चाहिए।
- मांसाहार और मदिरा से बचें: स्तोत्र पाठ के दिनों में तामसिक भोजन (मांसाहार, मदिरा) से परहेज करना चाहिए।
- सफाई और स्वच्छता: पूजा स्थल और स्वयं की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।
- दान: अपनी क्षमता अनुसार अन्न, वस्त्र या अन्य चीजों का दान अवश्य करें।
आदित्य हृदय स्तोत्रम भगवान सूर्य देव की असीम शक्ति और कृपा का प्रतीक है। यह केवल एक धार्मिक पाठ नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक उपकरण है जो हमें जीवन की हर चुनौती का सामना करने और विजय प्राप्त करने में मदद करता है। यह स्तोत्र हमें यह सिखाता है कि कैसे सूर्य देव की ऊर्जा को अपने भीतर समाहित करके हम अपने जीवन को प्रकाशित कर सकते हैं और सफलता के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं।
भगवान राम ने इस स्तोत्र के पाठ से रावण जैसे पराक्रमी शत्रु पर विजय प्राप्त की थी, और आज भी यह स्तोत्र हमें हमारे आंतरिक और बाहरी शत्रुओं पर विजय दिलाने में सक्षम है। चाहे वह स्वास्थ्य संबंधी समस्या हो, आर्थिक परेशानी हो, मानसिक तनाव हो, या किसी भी प्रकार की चुनौती हो, आदित्य हृदय स्तोत्रम का नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ हमें उन सभी से लड़ने की शक्ति और प्रेरणा प्रदान करता है।
तो आइए, हम सब सूर्य देव की इस दिव्य स्तुति को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं और उनके आशीर्वाद से आरोग्य, तेज, बल, यश और सर्वव्यापी विजय प्राप्त करें। यह स्तोत्र हमें न केवल भौतिक समृद्धि प्रदान करेगा, बल्कि हमें आध्यात्मिक रूप से भी सशक्त करेगा और जीवन के सही अर्थ को समझने में मदद करेगा। सूर्य देव हम सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें।
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