
छठी मैया के गीत: लोक-आस्था और संस्कृति का मधुर संगम
छठी मैया के गीत: छठ पूजा (Chhath Puja) सिर्फ एक पर्व नहीं, यह एक महान आस्था, समर्पण और प्रकृति पूजा का प्रतीक है। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में, सूर्य देव (Surya Dev) और छठी मैया (Chhathi Maiya) की आराधना की जाती है, और इस दौरान गाए जाने वाले गीत इस पूजा की आत्मा होते हैं। ये छठ गीत (Chhath Geet) केवल धुनें नहीं हैं, बल्कि इनमें व्रतियों (Vratis) की श्रद्धा, लोक-संस्कृति की महक और जीवन के हर पहलू की कहानी गूंजती है।
जब बात छठ गीतों की आती है, तो स्वर्गीय शारदा सिन्हा (Sharda Sinha) जी का नाम सबसे पहले आता है, जिन्हें ‘बिहार कोकिला’ भी कहा जाता है। उनकी आवाज़ में वो मिट्टी की सोंधी महक है जो हर व्रती को सीधा घाट तक ले जाती है। उनके अलावा, अनुराधा पौडवाल (Anuradha Paudwal), पवन सिंह (Pawan Singh), अनु दुबे (Anu Dubey), देवी (Devi) और कल्पना पटोवारी (Kalpana Patowary) जैसे कई कलाकारों ने इस परंपरा को अपनी सुरीली आवाज़ से समृद्ध किया है।
आइए, इन छठ गीतों के बोलों में छिपी आस्था और परंपरा को करीब से समझते हैं।
छठी मैया के गीत में छिपी आस्था और भाव
छठ गीतों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वे सीधे जीवन से जुड़े होते हैं। व्रती महिलाएं अपने दुख-सुख, संतान की कामना, सुहाग की मंगलकामना और सामाजिक जीवन के ताने-बाने को गीतों के माध्यम से छठी मैया और सूर्य देव के सामने रखती हैं।
1. काँच ही बाँस के बहंगिया (Kaanch Hi Baans Ke Bahangiya)
यह छठ पूजा के सबसे पारंपरिक और प्रसिद्ध गीतों में से एक है।
- मूल भाव: यह गीत छठ के लिए बांस की बहंगी (टोकरी) सजाकर उसमें प्रसाद भरकर घाट तक ले जाने का वर्णन करता है। बहंगी लचक रही है, जो व्रती के अदम्य उत्साह और अटूट श्रद्धा को दर्शाती है।
- कलाकार: इसे शारदा सिन्हा और अनुराधा पौडवाल दोनों की आवाज़ में बहुत पसंद किया जाता है। गीत में यह पूछा जाता है कि कौन उस बहंगी को घाट तक पहुंचाएगा, जो परिवार के सदस्यों के सहयोग और सामूहिक प्रयास को दर्शाता है।
2. हो दीनानाथ / उगs हे सुरुज देव (Ho Deenanath / Uga Ho Surujdev)
ये दोनों गीत सूर्य देव से सीधा संवाद करते हैं और पर्व के दौरान सबसे ज्यादा सुने जाते हैं।
- हो दीनानाथ: इस गीत में व्रती सूर्य देव, जिन्हें ‘दीनानाथ’ (दीनों के नाथ) कहा गया है, से प्रार्थना करती हैं कि वे जल्दी उदय हों। यह गीत आशा और प्रतीक्षा का भाव लिए होता है। इसमें अक्सर व्रती सूर्य देव के देर से आने पर उलाहना भी देती हैं, जो लोक-संबंधों की सहजता को दिखाता है।
- उगs हे सुरुज देव भेल भिनसरवा (Uga Ho Surujdev Bhel Bhinsarva): ‘भिनसरवा’ का अर्थ है भोर। इस गीत में व्रती सूर्य देव से आग्रह करती हैं कि अब तो सुबह हो गई है, आप जल्दी से दर्शन दें ताकि अर्घ्य दिया जा सके। इसमें बड़ी, अंधी, निर्धन और लंगड़ी जैसी विभिन्न प्रकार की व्रती पुकारती हैं, जो दर्शाता है कि छठी मैया की कृपा हर वर्ग और हर ज़रूरतमंद पर होती है।
3. केलवा के पात पर (Kelwa Ke Paat Par)
यह गीत छठ घाट के मनमोहक और पवित्र दृश्य का वर्णन करता है।
- मूल भाव: इसमें व्रती सूर्य देव को केले (Kelwa) के पत्तों पर रखे प्रसाद के बीच से झांककर उगने के लिए कहती है। यह गीत छठ के पारंपरिक प्रसाद और फल-सब्जियों के महत्व को उजागर करता है। गीत में व्रती से यह पूछा जाता है कि वह किसके लिए यह व्रत कर रही है, और वह अपने बेटवा (पुत्र) और परिवार की मंगलकामना का जवाब देती है।
- कलाकार: शारदा सिन्हा की आवाज़ में यह गीत सबसे प्रतिष्ठित माना जाता है, जो इसकी ग्रामीण सादगी और भक्ति को जीवंत करता है।
4. मरबो रे सुगवा धनुख से (Marbo Re Sugwa Dhanukh)
यह गीत छठ की कथा का एक भावनात्मक हिस्सा है।
- मूल भाव: इस गीत में एक व्रती उस तोते (सुगवा) को मारने की धमकी देती है जो छठ के प्रसाद के फल-फूल (जैसे नारियल, अमरूद) पर मंडराता है और उन्हें झूठा करता है। जब तोते को धनुष से मार दिया जाता है, तो उसकी सुगनी (पत्नी) विलाप करती है। यह गीत बताता है कि छठ व्रत में पवित्रता (शुद्धता) कितनी आवश्यक है और व्रती इस नियम को भंग करने वाले पर भी कठोर हो सकती है। अंत में, सुगनी सूर्य देव से अपने वियोग को खत्म करने की प्रार्थना करती है।
- कलाकार: इसे अनुराधा पौडवाल और अन्य कलाकारों ने बहुत ही भावपूर्ण तरीके से गाया है।
5. चार पहर हम जल थल सेविला (Chaar Pahar Hum Jal Thal Sevila)
यह गीत व्रती के कठिन तप और समर्पण का प्रतीक है।
- मूल भाव: ‘चार पहर’ का अर्थ है चार प्रहर रात भर। व्रती कहती है कि उसने चार पहर तक जल (घाट) और थल (किनारे) में खड़े होकर छठी मैया और दीनानाथ (सूर्य देव) की सेवा की है। वह बदले में पुत्र, पुत्री, धन, वैभव और सबसे बढ़कर, अपने सुहाग (अहिबात) की लम्बी आयु का वरदान मांगती है। यह गीत छठ की कठिन साधना को स्पष्ट करता है।
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आवाज़ों का महासंगम: पीढ़ियों की भक्ति
छठ गीतों के प्रचार-प्रसार में कलाकारों की भूमिका अमूल्य है:
- शारदा सिन्हा: उनकी आवाज़ पारंपरिक छठ का पर्याय है। उनके गीत जैसे ‘हे छठी मैया’, ‘बाँझी केवड़वा धइले ठाढ़’, ‘उठऊ सुरुज भइले बिहान’ और ‘सकल जगतारनी हे छठी माता’ आज भी हर घर में गूंजते हैं।
- अनुराधा पौडवाल: उनकी आवाज़ ने इन गीतों को एक नई पहचान दी। ‘अरघ के बेर’ और ‘कोपि कोपि बोलले सुरुज देव’ जैसे गीत उनकी भक्तिमय शैली को दर्शाते हैं।
- पवन सिंह और अन्य आधुनिक गायक: पवन सिंह ने ‘छठ गीत 2023’ और ‘भोजपुरी छठ गीत 2022’ जैसे गीतों से छठ गीतों को युवा पीढ़ी के बीच लोकप्रिय बनाया है। अनु दुबे, देवी, कल्पना पटोवारी और पूजा सिंह राणा जैसे कलाकारों ने भी नए गीतों (जैसे ‘छठी माई के आस’, ‘जोल-जोड़े सूपवा’) के माध्यम से इस परंपरा को आगे बढ़ाया है, जिससे यह पर्व अपनी जड़ों से जुड़ा रहकर भी समय के साथ कदम मिला रहा है।
छठ गीतों का महत्व: एसईओ और उपयोगकर्ता के लिए
छठ गीत सिर्फ मनोरंजन नहीं, ये सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दस्तावेज हैं।
- सांस्कृतिक धरोहर: ये गीत हमें ग्रामीण जीवन, लोक-रीति रिवाजों और पारिवारिक रिश्तों के महत्व को समझाते हैं।
- सामुदायिक भावना: घाट पर गाए जाने वाले ये गीत व्रतियों को एकता और सामूहिक ऊर्जा से भर देते हैं। यह एक ऐसा मंच है जहां स्त्री-पुरुष, अमीर-गरीब सब एक समान हो जाते हैं।
- प्रकृति से जुड़ाव: ये गीत सूर्य देव, जल और प्रकृति के अन्य तत्वों की पूजा का महत्व बताते हैं, जो आज के समय में पर्यावरण संरक्षण के लिए भी एक मजबूत संदेश है।
छठ पर्व की तैयारी, प्रसाद बनाने की शुद्धता, अर्घ्य देने का धैर्य और इन सबके बीच गूंजते छठ गीत… यह सब मिलकर एक ऐसा अद्वितीय अनुभव रचते हैं जो भारत की लोक-आस्था की गहराई को दर्शाता है। ये गीत आने वाली पीढ़ियों के लिए संस्कृति और संस्कार का वह सेतु हैं जो उन्हें अपनी जड़ों से बांधे रखेगा। जब भी कान में ‘केलवा के पात पर’ या ‘काँच ही बाँस के बहंगिया’ की धुन पड़ती है, तो मन श्रद्धा और भक्ति से भर जाता है, और दूर बैठा व्यक्ति भी अपनी जन्मभूमि की पावन माटी से जुड़ जाता है।
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