
Santoshi Mata Vrat Katha: पढ़ें संतोषी माता की व्रत कथा
Santoshi Mata Vrat Katha: भारतीय संस्कृति में शुक्रवार का दिन विशेष रूप से माँ लक्ष्मी और संतोषी माता को समर्पित होता है। विशेष रूप से संतोषी माता के व्रत को अत्यंत प्रभावशाली और मनोकामना पूर्ति करने वाला माना जाता है। यह व्रत संतान सुख, वैवाहिक सुख, धन और समृद्धि की प्राप्ति हेतु किया जाता है। इस दिन श्रद्धालु गुड़ और चने का भोग लगाकर व्रत रखते हैं और कथा श्रवण करते हैं।
कथा की शुरुआत:
बहुत समय पहले की बात है, एक वृद्धा थी जिसके सात बेटे थे। छह बेटे कमाने वाले थे और सातवां एकदम निठल्ला और आलसी था। वृद्धा छह बेटों के लिए स्वादिष्ट भोजन बनाती और उनके झूठे बचे हुए खाने को सातवें बेटे को परोसती। यह सिलसिला लम्बे समय तक चलता रहा।
एक दिन उस बेटे की पत्नी ने कटाक्ष करते हुए कहा – “तुम्हारी माँ का प्रेम तो इतना है कि वो तुम्हें सबका झूठा खाना खिलाती है।”
पति को विश्वास नहीं हुआ और उसने एक दिन स्वयं देखने की ठानी।
त्योहार का दिन था। घर में विभिन्न पकवान बने। वह पतला कपड़ा सिर पर ओढ़कर रसोई में छिप गया और देखने लगा। माँ ने छह बेटों को ससम्मान बिठाकर शानदार भोजन कराया। जब वे उठे, तो माँ ने उनकी जूठी थालियों से लड्डू के टुकड़े समेटे और एक नया लड्डू बनाया। यही लड्डू सातवें बेटे को दिया गया।
यह देखकर उसका दिल टूट गया और वह बिना कुछ कहे ही घर छोड़कर परदेश चला गया।
परदेश की यात्रा:
जाते-जाते वह अपनी पत्नी से मिलने गया। वह गोशाला में उपले थाप रही थी। उसने कहा – “मैं परदेश जा रहा हूँ।”
पत्नी ने कहा – “जाओ पिया, हम ईश्वर के भरोसे हैं।”
उसने अंगूठी दी और पत्नी ने अपने गोबर लगे हाथ को उसकी पीठ पर मारते हुए कहा – “यह मेरी निशानी है।”
परदेश में सफलता:
वह युवक परदेश पहुंचा और एक साहूकार की दुकान में काम माँगा। मेहनत, ईमानदारी और बुद्धिमत्ता से काम करने के कारण कुछ ही महीनों में वह दुकान का मालिक बन गया और अपार धन संपत्ति का मालिक बन बैठा।
इधर ससुराल में अत्याचार:
उधर उसकी पत्नी पर सास-ससुर अत्याचार करते। उसे दिनभर काम करवाया जाता, लकड़ी लाने जंगल भेजा जाता और भूसी की रोटी दी जाती।
एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी, तभी उसने कुछ महिलाओं को संतोषी माता का व्रत करते देखा। उसने उत्सुकतावश पूछा – “आप यह व्रत किस देवी का कर रही हैं?”
महिलाओं ने बताया – “यह संतोषी माता का व्रत है, जिससे सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।”
व्रत विधि:
उसने व्रत की विधि पूछी। महिलाओं ने बताया:
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हर शुक्रवार को व्रत करना।
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सवा आने या सवा रुपए का गुड़ और चना लेना।
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कथा सुनना या सुनाना।
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बीच में व्रत न तोड़ना।
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3 महीने से लेकर एक साल में माता फल देती हैं।
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व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए, जिसमें:
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अढ़ाई सेर आटे का खाजा
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खीर और चने का साग
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8 लड़कों को भोजन
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दक्षिणा देना
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और उस दिन खटाई वर्जित होती है।
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माता का मंदिर और व्रत का प्रारंभ:
उसने अपने पैसे से गुड़ और चना खरीदा, और संतोषी माता के मंदिर जाकर व्रत का संकल्प लिया।
पहले ही शुक्रवार को उसके पति का पत्र आया, दूसरे शुक्रवार को रुपया और तीसरे शुक्रवार को कपड़े वगैरह आए। यह देख जेठ-जेठानी जलने लगे।
पत्नी ने माता से कहा – “हे माता, मैंने आपसे पैसा नहीं माँगा। मुझे तो अपने पति का साथ चाहिए।”
माता की कृपा:
माता प्रसन्न हो गईं और स्वप्न में उसके पति को दर्शन देकर कहा – “तेरी पत्नी दुखी है, लौट जा।”
वह युवक सुबह उठकर माता की बात मानकर दुकान पर गया। आश्चर्यजनक रूप से उस दिन पूरा लेन-देन पूर्ण हुआ, सभी उधार चुकाए गए, और वह सारा माल बेचकर अत्यंत धनी बन गया। अब वह घर लौटने की तैयारी में लग गया।
घर वापसी:
वह सारा सामान लेकर घर की ओर रवाना हुआ। उधर उसकी पत्नी हर शुक्रवार माता के मंदिर में जाती और पूछती – “माँ, यह धूल कैसी उड़ रही है?”
माता ने मुस्कुरा कर कहा – “बेटी, तेरा स्वामी आ रहा है।”
पति के आते ही पत्नी ने माता के चरणों में धन्यवाद अर्पित किया। उसने सबको बुलाकर माता का उद्यापन विधिवत रूप से किया और माता के चमत्कार की महिमा गांव-गांव फैल गई।
व्रत का महत्व और फल:
इस कथा का सार यही है कि:
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सच्ची श्रद्धा, प्रेम और संतोष से किया गया कोई भी कार्य सफल होता है।
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संतोषी माता की भक्ति से समस्त बाधाएँ दूर होती हैं।
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यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों के लिए फलदायी है, चाहे वे संतान सुख चाहें या पति सुख।
व्रत करने के नियम:
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हर शुक्रवार को निराहार रहें।
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माता की पूजा करें और कथा सुनें।
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गुड़-चना का भोग लगाएं।
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किसी भी प्रकार की खटाई (नींबू, इमली, दही आदि) न खाएं।
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व्रत लगातार करें, बीच में न तोड़ें।
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फल मिलने पर उद्यापन अवश्य करें।
उपसंहार:
संतोषी माता का व्रत केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है जो मनुष्य को धैर्य, संयम और संतोष का पाठ सिखाती है। यह कथा प्रेरणा देती है कि अगर हमारा मन सच्चा है, नीयत साफ है और श्रृद्धा अडिग है, तो माँ संतोषी अवश्य कृपा करती हैं।
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