
Nirjala Ekadashi Vrat Katha: निर्जला एकादशी व्रत कथा, जानें संपूर्ण जानकारी, महत्त्व और लाभ
Nirjala Ekadashi Vrat Katha: निर्जला एकादशी हिन्दू धर्म में सबसे कठिन और महत्वपूर्ण व्रतों में से एक मानी जाती है। यह एकादशी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है और इसे बिना जल ग्रहण किए रखने का नियम है, इसलिए इसे “निर्जला” कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस एकादशी का व्रत करने से वर्ष भर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है। विशेष रूप से, जो भक्त नियमित रूप से एकादशी व्रत नहीं रख पाते, वे केवल इस एकादशी का व्रत करके समस्त एकादशियों का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
पौराणिक कथाओं में इसे “भीमसेनी एकादशी” भी कहा गया है क्योंकि पांडव पुत्र भीमसेन ने इसे किया था। इस व्रत का पालन करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह लेख आपको निर्जला एकादशी व्रत की पूरी जानकारी, विधि, कथा और लाभ विस्तार से प्रदान करेगा।
निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha)
जब वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया था। तब युधिष्ठिर ने कहा – जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिए। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे राजन् ! इसका वर्णन परम धर्मात्मा व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान् हैं।
तब वेदव्यासजी कहने लगे- कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी में अन्न खाना वर्जित है। द्वादशी को स्नान करके पवित्र होकर फूलों से भगवान केशव की पूजा करें। फिर पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करें। यह सुनकर भीमसेन बोले- परम बुद्धिमान पितामह! मेरी उत्तम बात सुनिए। राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव, ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि भीमसेन एकादशी को तुम भी न खाया करो परन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जाएगी।
भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा- यदि तुम नरक को दूषित समझते हो और तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और तो दोनों पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन नहीं करना।
भीमसेन बोले महाबुद्धिमान पितामह! मैं आपके सामने सच कहता हूँ। मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूँ। मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है। इसलिए महामुनि ! मैं पूरे वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ। जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये। मैं उसका यथोचित रूप से पालन करुँगा।
व्यासजी ने कहा- भीम! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान् पुरुष मुख में न डालें, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है। एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है। इसके बाद द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे। इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करें। वर्षभर में जितनी एकादशियां होती हैं, उन सबका फल इस निर्जला एकादशी से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि ‘यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है।\”
कुन्तीनन्दन! निर्जला एकादशी के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो। उस दिन जल में शयन करने वाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु यानी पानी में खड़ी गाय का दान करना चाहिए, सामान्य गाय या घी से बनी गाय का दान भी किया जा सकता है। इस दिन दक्षिणा और कई तरह की मिठाइयों से ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए। उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं।
जिन्होंने श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है। निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए। जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है। चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इस कथा को सुनने से भी मिलता है।
भीमसेन! ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए। उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है। इसके बाद द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे। जो इस प्रकार पूर्ण रूप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है। यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया।
भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया और उन्हें समस्त एकादशियों का पुण्य प्राप्त हुआ। इस कारण से इस एकादशी को “भीमसेनी एकादशी” भी कहा जाता है।
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निर्जला एकादशी का महत्व (Importance of Nirjala Ekadashi)
निर्जला एकादशी हिन्दू धर्म में सबसे कठिन और महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती है। यह एकादशी जल के बिना रखी जाती है, इसलिए इसे “निर्जला” कहा जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस व्रत को करने से समस्त एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है। जो भक्त इस दिन सच्चे मन से उपवास रखते हैं, उन्हें मोक्ष प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
निर्जला एकादशी कब मनाई जाती है? (When is Nirjala Ekadashi Observed?)
निर्जला एकादशी हर वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह ग्रीष्म ऋतु में आती है और अत्यंत कठिन उपवासों में से एक है। चूंकि इस दिन जल तक ग्रहण नहीं किया जाता, इसलिए यह व्रत विशेष संयम और श्रद्धा की परीक्षा लेता है।
निर्जला एकादशी व्रत विधि (Nirjala Ekadashi Vrat Vidhi)
व्रत करने की विधि इस प्रकार है:
1. व्रत की पूर्व संध्या पर:
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दशमी तिथि को सात्विक भोजन ग्रहण करें।
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ब्रह्मचर्य का पालन करें और मन को शुद्ध रखें।
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एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान करें और भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें।
2. व्रत के दिन:
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सूर्योदय से पूर्व स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
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भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष घी का दीपक जलाएं।
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तुलसी पत्र और पंचामृत से भगवान विष्णु का अभिषेक करें।
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पूरे दिन अन्न और जल का त्याग करें।
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श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और भजन-कीर्तन करें।
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ब्राह्मणों और गरीबों को दान करें।
3. पारण (व्रत खोलने की विधि):
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द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद व्रत खोलें।
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ब्राह्मणों को भोजन कराएं और फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें।
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निर्जला एकादशी व्रत के लाभ (Benefits of Nirjala Ekadashi Vrat)
निर्जला एकादशी व्रत करने से कई आध्यात्मिक और शारीरिक लाभ प्राप्त होते हैं।
1. आध्यात्मिक लाभ (Spiritual Benefits)
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समस्त एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है।
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मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
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भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
2. मानसिक लाभ (Mental Benefits)
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मन में शांति और सकारात्मकता आती है।
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मानसिक बल और संयम की वृद्धि होती है।
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ध्यान और एकाग्रता में सुधार होता है।
3. शारीरिक लाभ (Physical Benefits)
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शरीर के विषाक्त तत्व बाहर निकलते हैं।
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पाचन तंत्र को आराम मिलता है।
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जल त्यागने से शरीर की सहनशक्ति बढ़ती है।
निर्जला एकादशी से जुड़े नियम (Rules for Nirjala Ekadashi)
इस व्रत को करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना आवश्यक होता है:
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व्रत का संकल्प: व्रत से पहले भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए संकल्प लें।
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जल और अन्न का त्याग: इस दिन जल और अन्न दोनों का त्याग करना आवश्यक होता है।
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ब्राह्मचर्य का पालन: कामुक विचारों से दूर रहें और संयम का पालन करें।
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झूठ न बोलें: इस दिन किसी को भी ठगना, झूठ बोलना और बुरे कार्य करना वर्जित होता है।
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दान-पुण्य करें: ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान करें।
निर्जला एकादशी की पूजन सामग्री (Puja Samagri for Nirjala Ekadashi)
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री इस प्रकार है:
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भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र
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तुलसी पत्र
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पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, और गंगाजल)
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घी का दीपक
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अगरबत्ती और धूप
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पुष्प और फल
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मिठाई और पंचमेवा
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पीला वस्त्र
निर्जला एकादशी का वैज्ञानिक महत्व (Scientific Importance of Nirjala Ekadashi)
निर्जला एकादशी व्रत केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
1. डिटॉक्सिफिकेशन (Detoxification)
इस दिन उपवास करने से शरीर के विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं, जिससे पाचन तंत्र मजबूत होता है।
2. पानी न पीने के फायदे (Benefits of Not Drinking Water)
एक दिन तक बिना जल के रहने से शरीर के भीतर जल संतुलन (Water Retention) नियंत्रित होता है। यह व्रत किडनी और लीवर को बेहतर कार्य करने में सहायक होता है।
3. मानसिक शांति (Mental Peace)
ध्यान और पूजा करने से मानसिक तनाव कम होता है और एकाग्रता में सुधार आता है।
निर्जला एकादशी पर दान का महत्व (Importance of Charity on Nirjala Ekadashi)
हिन्दू धर्म में किसी भी व्रत का समापन दान-पुण्य से किया जाता है। निर्जला एकादशी पर विशेष रूप से इन चीजों का दान करना शुभ माना जाता है:
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जल से भरे घड़े का दान
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छाता, जूते और वस्त्र का दान
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अनाज और फल का दान
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ब्राह्मणों को भोजन कराना
निर्जला एकादशी व्रत के दौरान ध्यान देने योग्य बातें (Things to Remember During Nirjala Ekadashi)
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शारीरिक रूप से कमजोर या बीमार व्यक्ति जल ग्रहण कर सकते हैं, लेकिन अन्न का सेवन न करें।
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गर्भवती महिलाओं और वृद्धजनों को उपवास के दौरान विशेष ध्यान रखना चाहिए।
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इस दिन क्रोध, हिंसा और नकारात्मकता से दूर रहना चाहिए।
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व्रत रखने से पहले डॉक्टर से परामर्श लें, यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है।
निर्जला एकादशी हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र और फलदायी व्रत माना जाता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि मानसिक और शारीरिक शुद्धि भी प्रदान करता है। इस कठिन व्रत को करने से मनुष्य को समस्त एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है और भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुलता है।
यदि आप अपने जीवन में सकारात्मकता, शांति और ईश्वर की कृपा पाना चाहते हैं, तो इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करें।
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