
खतड़वा त्यौहार 2025: कुमाऊं का अनोखा लोक पर्व (Khatadwa Festival 2025)
Khatadwa Festival 2025: क्या आपने कभी सोचा है कि पहाड़ों में बदलते मौसम और पशुओं के स्वास्थ्य से जुड़े पर्व किस तरह लोगों की संस्कृति का हिस्सा बन जाते हैं? उत्तराखंड की पहचान ही उसकी संस्कृति और लोक पर्वों से है। इन्हीं में से एक है खतड़वा त्यौहार, जिसे खासतौर पर कुमाऊं क्षेत्र में बड़े उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार केवल धार्मिक परंपरा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें प्रकृति, पशु और ऋतु परिवर्तन की गहरी झलक मिलती है।
साल 2025 में खतड़वा त्यौहार 17 सितम्बर को कन्या संक्रांति के दिन मनाया जाएगा।
खतड़वा त्यौहार क्या है? (What is Khatadwa Festival)
खतड़वा पर्व या खतड़वा त्यौहार उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का लोकपर्व है। यह पर्व पशुओं के स्वास्थ्य, ऋतु परिवर्तन और प्राकृतिक संतुलन को समर्पित माना जाता है। ग्रामीण समाज में इसे गैत्यार या गाईत्यार भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन मुख्य रूप से पशुओं की सेवा और उनकी सुरक्षा की कामना की जाती है।
खतड़वा त्यौहार की तिथि 2025 (Khatadwa Festival Date 2025)
तिथि – 17 सितम्बर 2025
दिन – बुधवार
अवसर – कन्या संक्रांति
यह तिथि अश्विन माह की शुरुआत और वर्षा ऋतु की समाप्ति का संकेत देती है। इसी समय से पहाड़ों में ठंडक बढ़ने लगती है और खेती-बाड़ी तथा पशुपालन की स्थिति भी बदल जाती है।
खतड़वा त्यौहार का महत्व (Importance of Khatadwa Festival)
इस पर्व का प्रमुख उद्देश्य ऋतु परिवर्तन को मान्यता देना और पशुओं के स्वास्थ्य की रक्षा करना है।
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इस दिन लोग अपने गौ-धन की विशेष सेवा करते हैं।
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पशुओं को ताजा हरी घास और पौष्टिक भोजन खिलाया जाता है।
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माना जाता है कि इस दिन की गई पूजा और अनुष्ठान पशुओं को रोगों से बचाते हैं।
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यह पर्व लोगों को सिखाता है कि प्रकृति और पशु केवल जीवन का आधार नहीं बल्कि हमारी संस्कृति के भी हिस्से हैं।
खतड़वा त्यौहार से जुड़ी लोककथाएं (Folk Stories of Khatadwa Festival)
खतड़वा पर्व के साथ एक प्रचलित किंवदंती भी जुड़ी है। लोककथाओं के अनुसार, कुमाऊं के सेनापति गैड़ा सिंह ने गढ़वाल के सेनापति खतड़ सिंह को हराया था और उसी विजय के उपलक्ष्य में यह पर्व मनाया जाने लगा।
हालांकि, कई इतिहासकार इस कथा को भ्रामक और काल्पनिक मानते हैं। उनका कहना है कि इस पर्व की परंपराएं स्पष्ट रूप से बताती हैं कि यह विजय पर्व नहीं बल्कि ऋतु परिवर्तन और पशुओं के कल्याण का पर्व है।
खतड़वा त्यौहार की परंपराएं और विधियां (Traditions and Rituals of Khatadwa Festival)
1. घर और पशुओं की देखभाल (Cleaning and Animal Care)
सुबह से ही घर की साफ-सफाई की जाती है। पशुओं के बाड़े को भी स्वच्छ किया जाता है। गाय, बैल, बकरी जैसे पशुओं को हरी घास और पौष्टिक भोजन खिलाया जाता है।
2. खतड़वा जलाना (Burning of Khatadwa)
शाम को बच्चे और युवा मिलकर पतली-लंबी छड़ियों के सिरों पर कांस के फूल बांधते हैं।
इसके बाद वे घास-फूस से बने पुतले (खतड़वा) को जलाते हैं।
जलते हुए पुतले के चारों ओर लोग उत्साह के साथ नाचते-गाते हैं और छड़ियों से उस आग पर प्रहार करते हुए कहते हैं –
“भैल्लो जी भैल्लो, गाई की जीत, खतड़वा की हार।”
3. आग के चारों ओर उछलना (Jumping Over Fire)
पुतला जलने के बाद लोग उस अग्नि के चारों ओर उछल-कूद करते हैं और अंत में उस पर कूदते हैं। माना जाता है कि यह अशुभ शक्तियों के नाश का प्रतीक है।
4. खीरे का विशेष प्रयोग (Use of Cucumbers)
इस दिन गांव के लोग विशेष खीरे तोड़कर आपस में बांटते और खाते हैं।
पशुचारक वर्ग में इन खीरों को पशुओं की बांधने वाली किल्ली (दौंणी) पर मारकर तोड़ा जाता है। यह परंपरा पशुओं की समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
5. बूढ़ी और बूढ़ा बनाना (Making of Old Figures)
कुछ क्षेत्रों में बच्चे कांस के फूलों से बूढ़ी और घास के मूढ़े से बूढ़ा बनाते हैं।
शाम को इन पुतलों को उखाड़कर छत पर फेंका जाता है और फिर खतड़वा के साथ जला दिया जाता है।
इसके बाद बच्चे राख का तिलक लगाते हैं और पशुओं के माथे पर भी लगाते हैं।
खतड़वा शब्द की उत्पत्ति (Origin of Khatadwa Word)
खतड़वा शब्द ‘खतड़’ से निकला है, जिसका अर्थ है ‘विस्तर या आवरण’।
जिस तरह हम सर्दियों में खुद को ठंड से बचाने के लिए खतड़ (कंबल या ओढ़ना) का उपयोग करते हैं, उसी तरह यह पर्व भी शीत ऋतु से सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है।
खतड़वा पर्व और वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Aspect of Khatadwa Festival)
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खतड़वा त्यौहार का सीधा संबंध ऋतु परिवर्तन से है।
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इस समय मानसून की नमी समाप्त होती है और वातावरण में ठंडक आने लगती है।
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पशुओं में इस ऋतु में रोग फैलने का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए उनके स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
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आग जलाने और राख को घर तथा पशु-स्थलों पर लगाने से कीटाणु नाश होता है, जो एक प्राकृतिक संरक्षण पद्धति है।
खतड़वा त्यौहार कहां-कहां मनाया जाता है? (Where is Khatadwa Celebrated)
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यह पर्व विशेष रूप से कुमाऊं क्षेत्र में लोकप्रिय है।
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इसके अलावा नेपाल के कुछ हिस्सों, दार्जिलिंग और सिक्किम में भी इसे मनाया जाता है।
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इसका प्रसार मुख्यतः पशुपालक समुदायों में देखा जाता है।
खतड़वा त्यौहार का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व (Social and Cultural Significance)
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सामूहिकता का प्रतीक – गांव के लोग एक साथ मिलकर इस त्यौहार को मनाते हैं।
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पशुपालन और कृषि संस्कृति – पर्व पशुओं और खेती से जुड़े महत्व को उजागर करता है।
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प्रकृति और मानव का संबंध – यह पर्व दर्शाता है कि प्रकृति और पशु हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं।
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लोकगीत और परंपराएं – इस दिन लोकगीत गाए जाते हैं और लोकनृत्य भी होते हैं।
खतड़वा त्यौहार केवल एक लोक पर्व नहीं है, बल्कि यह प्रकृति, पशुपालन और ऋतु परिवर्तन का जीवंत उत्सव है।यह पर्व हमें यह सिखाता है कि जीवन केवल मानव तक सीमित नहीं है, बल्कि पशु और प्रकृति भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं।
17 सितम्बर 2025 को मनाया जाने वाला खतड़वा पर्व हमें अपनी जड़ों और परंपराओं से जोड़ता है और यह बताता है कि लोकजीवन और प्रकृति का गहरा संबंध हमेशा बना रहना चाहिए।
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