
Hindi Story 1: पहाड़ में बाघ का हमला और उसका अंत
Hindi Story 1:
अध्याय 1 – पहाड़ की छाया
हिमालय की निचली ढलानों पर स्थित देवगढ़ नाम का एक शांत गाँव था। चारों ओर देवदार, चीड़ और बुरांश के घने वृक्ष; बीच से बहती एक पतली नदी; और दूर ऊँचाइयों पर बादलों से छिपा पहाड़-देवगढ़ को मानो देवताओं का घर बना देते थे।
गाँव में लोग सुबह लकड़ियाँ चुनने, मवेशियों को चराने और खेतों में काम करने निकलते, और शाम को अलाव के पास बैठकर बातों में दिन की थकान उतारते।
लेकिन पिछले कुछ हफ्तों से देवगढ़ में कुछ बदल सा गया था-लोगों की मुस्कान गायब थी, बच्चों की खिलखिलाहट पर चिंता ने परदा डाल दिया था।
क्योंकि पहाड़ में एक बाघ उतर आया था।
पहले मवेशी मारे गए, फिर दो लकड़हारों को हमला करके बुरी तरह घायल किया गया। गाँव वाले सहमे हुए थे। जंगल विभाग को खबर दी गई, लेकिन पहाड़ की जटिल राहों में बाघ की खोज आसान नहीं थी।
इस बीच एक नाम सभी की आशा बनकर सामने आया-वीर प्रताप, जो कभी सेना में ट्रैकर था और अब गाँव में ही शांत जीवन जी रहा था।
अध्याय 2 – संकट की आहट
एक रात, गाँव में अचानक अफरा-तफरी मच गई।
घाटी में गूँजती भयावह दहाड़ ने सबको सुला दिया।
ग्रामप्रधान का बेटा दौड़ता हुआ वीर प्रताप के घर पहुँचा।
लक्ष्मण: “वीर भैया, जल्दी आइए! बाघ गाँव के ऊपर वाले हिस्से में दिखा है। भेड़-बकरियों का बाड़ा तोड़ दिया है!”
वीर प्रताप ने बिना समय गंवाए अपना लालटेन उठाया और बाहर निकला। उसकी आँखों में घबराहट नहीं, बल्कि वही साहस था जो उसने वर्षों सीमा पर रहते हुए सीखा था।
वीर: “सब लोग घरों के अंदर रहें। किसी को बाहर मत निकलने देना। मैं और पवन जंगल की तरफ जाते हैं।”
पवन उसका छोटा भाई था, लेकिन जंगल को पढ़ने की उसकी क्षमता भी गजब की थी।
दोनों हाथों में मशाल लिए बाड़े की ओर बढ़े। वहाँ टुकड़े-टुकड़े हुए बाड़े की लकड़ियाँ जमीन पर बिखरी हुई थीं। खून की गंध हवा में थी।
पवन काँपती आवाज में बोला-
“भैया… ये तो वही चोट है जो बड़ी बिल्ली लगाती है। अब ये नीचे गाँव तक आ चुका है।”
वीर ने सिर हिलाया।
“इन पहाड़ों में भूख और ठंड दोनों जानवरों को बेचैन कर देती हैं। लेकिन अब ये गाँव पर हमला कर रहा है… इसे रोकना ही होगा।”
अध्याय 3 – बाघ की कहानी
अगले दिन जंगल विभाग का निरीक्षक गाँव पहुँचा।
निरीक्षक जोशी: “हमें बाघ को पकड़ना है। लेकिन यह सामान्य बाघ नहीं लगता। यह हमला क्यों कर रहा है, इसका कारण खोजने के लिए हमें पहाड़ की तरफ जाना होगा।”
वीर ने कहा-
“मैं आपकी मदद करूँगा। मैं उस इलाके को जानता हूँ।”
पाँच लोगों की टीम तैयार हुई-
वीर, पवन, निरीक्षक जोशी, दो वनरक्षक-मनमोहन और देव।
सफर कठिन था। रास्ता फिसलन भरा और संकरा। हवा में बर्फ़ की चुभन।
रास्ते में वीर का ध्यान एक असामान्य निशान पर गया-सूखे पेड़ की खाल पर गहरी खरोंचें।
वीर: “ये सिर्फ ताकत दिखाने के लिए नहीं… यह अपना क्षेत्र चिन्हित कर रहा है। इसका मतलब है कि यह पहाड़ का मूल निवासी है।”
देव ने पूछा-
“तो फिर गाँव में क्यों आ गया?”
उत्तर पहाड़ की ऊँचाई पर मिला-जहाँ उन्हें एक छिपी गुफा मिली।
अंदर जाकर देखा तो वहाँ दो मरे हुए शावकों के कंकाल पड़े थे।
पवन की आँखें भर आईं-
“इसकी संतानों को किसी ने मार दिया होगा… शायद शिकारी या जंगल की आग…”
निरीक्षक ने गंभीर आवाज में कहा-
“तो यह बदले और भूख के कारण नीचे आया है। ऐसा बाघ बहुत खतरनाक होता है।”
वीर ने गहरी साँस ली-
“अब समझ आया कि यह इतना उग्र क्यों है… लेकिन इसे रोकना ही होगा।”
अध्याय 4 – गाँव पर तूफ़ान
अगली रात गाँव में और विनाश हुआ।
दहाड़ पहले से अधिक भयानक थी।
लोग घरों में दुबक गए, दरवाज़े बंद कर दिए।
रात के करीब 11 बजे बाघ सीधे चौपाल के पास दिखाई दिया।
उसने मिट्टी को पंजों से उखाड़ा, हवा में गंध सूँघी, और फिर पूरे बल से हमला किया।
लकड़ी की एक दुकान पलट गई, मवेशी भागने लगे।
उधर वीर और उसकी टीम गाँव की ओर दौड़ी।
वीर ने मशाल हवा में घुमाते हुए चिल्लाया-
“सब लोग अंदर जाओ! खिड़कियाँ बंद करो!”
बाघ की लाल आँखे अँधेरे में चमक रही थीं।
एक क्षण को वीर और बाघ आमने-सामने खड़े हो गए-दोनों पहाड़ की आत्मा से बने योद्धा।
अध्याय 5 – जंगल का पीछा
बाघ गाँव में अधिक देर नहीं रुका। वह पहाड़ की ओर छलांग लगाता हुआ भागा।
टीम उसका पीछा करने लगी।
लेकिन रास्ता खतरनाक था-खाई, चट्टान और घना अंधेरा।
दीपक की रोशनी में वीर ने देखा कि बाघ ने जिस रास्ते से छलाँग लगाई है, वह संकरा था।
सिर्फ वही जा सकता था जो पहाड़ की चाल समझता हो।
वीर: “तुम सब यहीं रुको। मैं अकेला जाता हूँ। यह रास्ता सबके लिए सुरक्षित नहीं है।”
निरीक्षक ने विरोध किया, पर वीर नहीं रुका।
वह मशाल लिए बाघ के पीछे पहाड़ की गहराइयों में प्रवेश कर गया।
उसके पीछे बर्फ़ गिर रही थी, शाखाएँ टूट रही थीं, हवा गुर्राहट जैसी सुनाई देती थी।
अध्याय 6 – गुफा का सामना
कई घंटों के पीछा करने के बाद वीर एक विशाल गुफा के सामने पहुँचा।
अंदर अंधेरा था, मगर कहीं दूर से आँखों की दो लाल चमकें दिखाई दे रही थीं।
बाघ वहीं था।
वीर ने मशाल ऊँची उठाई और बोला-
“मैं तुम्हें मारने नहीं आया। तुम भी नहीं चाह रहे होते अगर तुम्हारे बच्चे जिंदा होते।”
बाघ ने दहाड़ मारी-एक ऐसी आवाज जिसमें दर्द और क्रोध एक साथ भरा था।
वीर समझ गया-अब वार होगा।
बाघ बिजली की गति से उसकी ओर झपटा।
वीर ने मशाल आगे कर दी, बाघ चीखा पर रुका नहीं।
दोनों गुफा के भीतर जमीन पर लुढ़कते चले गए।
वीर के हाथ में शिकारी भाला था, पर वह जानता था कि एक गलत वार से यह प्राणी मर जाएगा-जो केवल अपने बच्चों के दर्द से पागल हुआ था।
अध्याय 7 – मौत का किनारा
गुफा का एक भाग अचानक खुलकर खाई के ऊपर जा रहा था।
वीर और बाघ खतरनाक ढलान पर पहुँच गए।
बाघ ने फिर हमला किया और वीर गिर पड़ा।
उसके हाथ से भाला दूर जा गिरा।
बाघ उसके सीने पर पंजा रखकर गुर्राने लगा।
उसकी साँसें वीर के चेहरे पर पड़ रहीं थीं-गरम, भारी और क्रोधित।
वीर ने धीरे कहा-
“तुम अपने बच्चों के लिए लड़े… मैं अपने गाँव के लिए लड़ रहा हूँ।”
जब बाघ अंतिम वार करने ही वाला था, तभी गुफा का एक हिस्सा बर्फ़ के भार से टूट गया।
भारी चट्टानें गर्जना के साथ नीचे गिरीं।
बाघ का संतुलन बिगड़ा।
वह खाई की ओर फिसलने लगा।
वीर ने उसका पैर पकड़ा-हाँ, उसने बाघ का पैर पकड़ा।
“नहीं… मौत समाधान नहीं है।”
पर बाघ का वजन बहुत ज्यादा था।
वीर का हाथ फिसल गया।
एक अंतिम दहाड़ के साथ बाघ गहरी खाई में गिर गया…
और पहाड़ कई सेकंड तक गूँजता रहा।
अध्याय 8 – बाघ का अंत, पहाड़ की शांति
वीर बेहोश हो गया।
सुबह उसकी टीम उसे खोजते हुए गुफा तक पहुँची।
उसे सुरक्षित निकाला गया।
गाँव में उसने आँखें खोलीं।
चारों ओर लोग खड़े थे-डरे हुए, पर जीवित।
निरीक्षक जोशी: “बाघ नीचे गहरी दरार में मिला है… अब गाँव सुरक्षित है।”
वीर ने आह भरी।
“उसने किसी को गलत नहीं मारा… वह सिर्फ अपने दर्द में खो गया था।”
गाँव वालों ने उसकी बहादुरी की सराहना की।
लेकिन वीर ने कहा-
“यह मेरी जीत नहीं… पहाड़ की शांति की जीत है।”
इसके बाद देवगढ़ में फिर कभी बाघ का हमला नहीं हुआ।
गाँव की ज़िंदगी वापस अपनी लय में लौट आई-सूर्योदय, खेत, बच्चों की हँसी और पहाड़ की सौम्यता।
और वीर प्रताप?
उसने उस बाघ के लिए पहाड़ की चोटी पर एक पत्थर रखा-पहाड़ी भाषा में लिखा था-
“यहाँ उस आत्मा का विश्राम है जिसने अपने बच्चों के लिए लड़ाई लड़ी।”
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