बागेश्वर, Uttarakhand News: उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के गरुड़ तहसील के दाबू गांव में 18 वर्षीय युवती की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत और बिना पुलिस जांच के अंतिम संस्कार किए जाने का मामला सामने आया है। इस घटना ने पूरे क्षेत्र में सनसनी फैला दी है। मृतका के मायके पक्ष की तहरीर पर राजस्व पुलिस ने ग्राम प्रधान और अंतिम संस्कार में शामिल अन्य ग्रामीणों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
घटना का विवरण
3 नवंबर को दाबू गांव की रहने वाली हेमा बिष्ट (18 वर्ष) का शव गांव के पास जंगल में एक पेड़ से लटका पाया गया। इस घटना के बाद बिना पुलिस को सूचना दिए और बिना पोस्टमार्टम के ही शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया। मृतका की नानी गीता देवी, जो चमोली जिले के देवाल क्षेत्र की निवासी हैं, ने पुलिस को दी तहरीर में आरोप लगाया कि हेमा की हत्या कर इसे आत्महत्या का रूप दिया गया।
गीता देवी ने यह भी आरोप लगाया कि ग्रामीणों ने आपसी बैठक में षड्यंत्र रचकर शव का अंतिम संस्कार कर दिया ताकि कोई सबूत सामने न आ सके। उन्होंने यह भी बताया कि हेमा के दादा ने गांव वालों से अनुरोध किया था कि अंतिम संस्कार तब तक न किया जाए जब तक उनकी नानी नहीं आ जाती, लेकिन इस आग्रह को नजरअंदाज कर दिया गया।
नानी की तहरीर पर मामला दर्ज
मृतका की नानी गीता देवी ने हल्द्वानी के एक सामाजिक संगठन की मदद से तहरीर दी, जिसमें उन्होंने कहा कि हेमा की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई है। उन्होंने आशंका जताई कि उसकी हत्या की गई और इसे आत्महत्या दिखाने की कोशिश की गई।
राजस्व पुलिस ने गीता देवी की शिकायत पर दाबू और पय्या गांव की ग्राम प्रधान समेत अंतिम संस्कार में शामिल अन्य ग्रामीणों के खिलाफ हत्या और सबूत छिपाने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया है।
क्या कह रही है पुलिस?
राजस्व उपनिरीक्षक कुंदन प्रसाद ने बताया कि तहरीर के आधार पर एफआईआर दर्ज कर ली गई है और मामले की गहन जांच की जा रही है। पुलिस ने बताया कि अंतिम संस्कार के दौरान बिना अनुमति और पोस्टमार्टम के शव का दाह संस्कार करना कानूनी रूप से गलत है।
परिवार की स्थिति और आरोप
मृतका हेमा बिष्ट की मां नंदी देवी का पहले ही निधन हो चुका है, और हेमा अपने पिता के साथ रहती थी। नानी गीता देवी का आरोप है कि हेमा के साथ कुछ अनहोनी घटना घटी और उसे आत्महत्या के रूप में पेश करने की कोशिश की गई।
सामाजिक संगठन का हस्तक्षेप
गीता देवी ने हल्द्वानी के एक सामाजिक संगठन की मदद ली, जिसने उन्हें कानूनी सहायता प्रदान की और मामला दर्ज करवाने में मदद की।
ग्रामीणों का रवैया संदेहास्पद
घटना के बाद ग्रामीणों का रवैया भी सवालों के घेरे में है। उन्होंने न तो पुलिस को समय पर सूचना दी और न ही पोस्टमार्टम कराया, जो कि एक कानूनी प्रक्रिया है। ग्रामीणों द्वारा शव का जल्दबाजी में अंतिम संस्कार करना मामले को और संदिग्ध बना रहा है। पुलिस ने बताया कि मामले की हर पहलू से जांच की जा रही है। पोस्टमार्टम न कराए जाने की वजह से साक्ष्यों को खोजना चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन पुलिस हर संभव कोशिश कर रही है। मृतका के परिवार ने न्याय की मांग की है और उम्मीद जताई है कि पुलिस दोषियों को सजा दिलाने में कामयाब होगी। इस घटना ने पूरे क्षेत्र में गुस्से और आक्रोश का माहौल बना दिया है। यह घटना समाज में कानून व्यवस्था और सामाजिक जिम्मेदारी की कमी को उजागर करती है। बिना जांच और पोस्टमार्टम के शव का अंतिम संस्कार करना न केवल कानूनी नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह एक परिवार के अधिकारों का भी हनन है। अब सबकी नजरें पुलिस जांच पर हैं, जो इस घटना के पीछे के सच को उजागर करेगी।
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