सुबह से ही उमड़ पड़ा मतदान का सैलाब
पहले चरण में ही वोटिंग का माहौल देखते ही बन रहा था। सुबह होते ही गांव के लोग, खासकर महिलाएं और बुजुर्ग मतदान केंद्रों की ओर निकल पड़े। प्रशासन ने मतदान केंद्रों पर सुरक्षा और सुविधाओं की पूरी व्यवस्था की थी। जगह-जगह पुलिस बल तैनात था ताकि मतदान शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो सके। बुजुर्गों और दिव्यांगों की मदद के लिए स्वयंसेवक भी मौजूद रहे।
सुबह 10 बजे तक करीब 11.72% मतदान दर्ज हुआ था, जो 12 बजे तक बढ़कर 27% तक पहुंच गया। दोपहर होते-होते जैसे ही धूप निकली और मौसम ने भी थोड़ी राहत दी, मतदान प्रतिशत तेजी से चढ़ने लगा। दोपहर 2 बजे तक मतदान का आंकड़ा 41.87% पार कर गया था।
युवाओं और महिलाओं में दिखा उत्साह
चुनाव की सबसे बड़ी तस्वीर यह रही कि महिलाओं की भागीदारी इस बार पुरुषों से कहीं ज्यादा दिखी। कई मतदान केंद्रों पर महिलाओं की लाइनें पुरुषों से लंबी रहीं। साथ ही युवाओं में भी वोटिंग को लेकर खासा जोश देखने को मिला। पहली बार वोट डालने वाले युवा चेहरे पर गर्व और जिम्मेदारी का भाव साफ नजर आ रहा था। यही वजह रही कि शाम चार बजे तक कुल मतदान प्रतिशत 55% तक पहुंच गया।
कुमाऊं और गढ़वाल मंडल का हाल
कुमाऊं मंडल की बात करें तो नैनीताल के चार विकास खंडों में शाम तक 59.37% मतदान दर्ज किया गया। चंपावत जिले में भी मतदान का प्रतिशत 55.75% तक पहुंच गया। पिथौरागढ़ जिले के धारचूला, मुनस्यारी, डीडीहाट, कनालाछीना में भी 56% से अधिक मतदान हुआ। उधम सिंह नगर के खटीमा, सितारगंज और बाजपुर जैसे इलाकों में 68% से ज्यादा मतदान दर्ज किया गया, जो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के गृहक्षेत्र में वोटिंग के प्रति लोगों की जागरूकता को दर्शाता है।
गढ़वाल मंडल में चमोली, रुद्रप्रयाग जैसे पहाड़ी जिलों में मौसम की चुनौतियों के बावजूद लोगों ने मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कई सीमांत गांवों में प्रशासन ने विशेष इंतजाम किए ताकि लोग किसी भी परिस्थिति में अपने मताधिकार से वंचित न रहें।
प्रवासी मतदाताओं की घर वापसी
इस पंचायत चुनाव की एक और बड़ी खासियत रही प्रवासी मतदाताओं की वापसी। रोजी-रोटी के लिए बड़े शहरों में बसे हजारों लोग इस बार विशेष तौर पर अपने गांव लौटे। रामनगर, रानीखेत, खटीमा, चंपावत जैसे क्षेत्रों में सैकड़ों बसें, टैक्सियां और टेंपो ट्रैवलर प्रवासियों को गांव लाने-ले जाने में लगी रहीं। बाजारों में भीड़ से लेकर सड़कें और पार्किंग तक खचाखच भरी रहीं।
नेताओं ने भी निभाई अपनी जिम्मेदारी
राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खटीमा में अपनी माता जी के साथ मतदान किया। उन्होंने मतदाताओं से अपील की कि ज्यादा से ज्यादा लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करें। सीएम ने कहा कि एक-एक वोट उत्तराखंड के गांवों में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करेगा। इसके अलावा मंत्री सतपाल महाराज, धन सिंह रावत, रेखा आर्य जैसे कई नेताओं ने भी अपने क्षेत्रों में मतदान किया और जनता से लोकतंत्र के इस पर्व में भागीदार बनने की अपील की।
केदारनाथ के घोड़ा-खच्चर चालक अतुल ने रचा इतिहास, पहुंचा IIT मद्रास, सीएम धामी ने दी बधाई और दिया भरोसा
प्रशासन रहा चौकस
चुनाव के दौरान प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद नजर आया। चंपावत के डीएम मनीष कुमार और पुलिस अधीक्षक अजय गणपति ने मतदान केंद्रों का निरीक्षण कर कर्मचारियों को निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान संपन्न कराने के निर्देश दिए। रुद्रप्रयाग और चमोली जैसे जिलों में भी डीएम और एसपी खुद बूथों का दौरा करते दिखे।
मौसम बना चुनौती, पर हौसला रहा मजबूत
बारिश की संभावना को देखते हुए कई इलाकों में सुबह हल्की बारिश हुई, लेकिन मतदाताओं के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। लोगों ने छाते और बरसातियों के साथ लाइनों में लगकर अपने वोट डाले। मौसम विभाग के अलर्ट के बावजूद लोगों का यह जोश लोकतंत्र में उनकी गहरी आस्था को दर्शाता है।
मतदान क्यों है महत्वपूर्ण?
उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में पंचायत चुनाव का महत्व और भी बढ़ जाता है। गांव के विकास से लेकर मूलभूत सुविधाओं तक की जिम्मेदारी ग्राम प्रधान और बीडीसी सदस्यों की होती है। ऐसे में सही उम्मीदवार को चुनना बेहद जरूरी है। यही वजह है कि महात्मा गांधी ने भी स्थानीय स्वशासन को लोकतंत्र की असली ताकत बताया था। आज भी अगर गांव-गांव में जिम्मेदार प्रतिनिधि चुन लिए जाएं तो विकास की तस्वीर तेजी से बदल सकती है।
अब अगले चरण और मतगणना की तैयारी
पहले चरण के बाद अब प्रदेश दूसरे चरण की वोटिंग के लिए तैयार हो रहा है, जो 28 जुलाई को होगी। इसके बाद 31 जुलाई को एक साथ मतगणना की जाएगी। पहले चरण में 17,829 प्रत्याशी मैदान में हैं और 26 लाख से ज्यादा मतदाता वोट डालने के पात्र हैं।
पंचायत चुनाव केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत की रीढ़ हैं। आज जब लोग अपने गांव लौटकर वोट डाल रहे हैं तो यह भरोसा भी लौट रहा है कि गांव की तस्वीर और तकदीर दोनों बदली जा सकती है। सोशल मीडिया पर मीम और रील बनाने से बेहतर है कि लोग लोकतंत्र के इस पर्व में भाग लें और व्यवस्था बदलने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएं।
इस बार पंचायत चुनाव ने फिर साबित कर दिया है कि बदलाव केवल शहरों से नहीं, बल्कि गांव की गलियों और पंचायत भवनों से शुरू होता है। जागरूक मतदाता और मजबूत पंचायतें ही सशक्त उत्तराखंड का सपना साकार कर सकती हैं।
यह भी पढ़ें: केदारनाथ यात्रा से महिला समूहों की आय में बढ़ोतरी, स्वरोजगार को मिला प्रोत्साहन
अगर आपको उत्तराखंड से सम्बंधित यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो इसे शेयर करें साथ ही हमारे Facebook | Twitter | Instagram व | Youtubeको भी सब्सक्राइब करें .