नरेंद्र सिंह नेगी (Narendra Singh Negi) को अक्सर ‘गढ़ रत्न’ और ‘हिल्स का बॉब डायलन’ के नाम से जाना जाता है। उनका जन्म 12 अगस्त 1949 को हुआ था और वे उत्तराखंड के सबसे प्रख्यात लोक गायक, संगीतकार और कवि हैं, जो मुख्य रूप से गढ़वाली भाषा में गाते हैं। उनका संगीत उत्तराखंड के पारंपरिक लोक संगीत को एक नई दिशा देने में अहम भूमिका निभाता है। वे अब तक 1000 से भी अधिक गीत गा चुके हैं और उनके कार्य ने आने वाले कलाकारों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
Narendra Singh Negi का प्रारंभिक जीवन
नरेंद्र सिंह नेगी का जन्म पौड़ी गढ़वाल जिले के पौड़ी नगर में हुआ था, जहां उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। उनके पिता भारतीय सेना में नायब सूबेदार के पद पर कार्यरत थे। नेगी जी ने ग्रेजुएशन के लिए रामपुर का रुख किया, जहां उनके चचेरे भाई अजीत सिंह नेगी ने उन्हें तबला सिखाया। बचपन से ही वे विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनों में पारंपरिक लोक गायक सुनना पसंद करते थे। 1974 में, उन्होंने अपनी मां और अन्य महिलाओं की कड़ी मेहनत से प्रेरित होकर अपना पहला गीत लिखा और संगीतबद्ध किया।
Narendra Singh Negi के संगीत करियर की शुरुआत
नेगी जी ने 1974 में अपना पहला स्व-रचित गीत रिकॉर्ड किया और 1976 में अपना पहला संगीत एल्बम “गढ़वाली गीतमाला” रिलीज़ किया। इस एल्बम के 10 भाग थे, जो विभिन्न कंपनियों से प्रकाशित हुए थे। इस वजह से नेगी जी को अपने गीतों को एकसाथ प्रबंधित करने में कठिनाई हो रही थी, इसलिए उन्होंने अपने एल्बमों को अलग-अलग शीर्षकों से जारी करना शुरू किया। उनकी पहली एल्बम का शीर्षक “बुरांश” था।
नेगी जी को उत्तराखंड के समकालीन गीतों में 12 ताल और अनियमित चार-ताल वाले जैसंारी क्षेत्र के पारंपरिक धुनों को जोड़ने का श्रेय जाता है। उन्होंने प्रेम, दुख, ऐतिहासिक घटनाएं, सामाजिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर गीत लिखे हैं। उन्होंने “जागर”, “मंगल”, “बसंती”, “खुड़ेर”, “छोपती”, “चौंफुला” और “झुमेला” जैसी लोकप्रिय संगीत शैलियों में गाया है। वे गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी जैसी स्थानीय भाषाओं में भी गाते हैं।
फिल्मी सफर
नेगी जी ने गढ़वाली फिल्मों जैसे “चक्राचल”, “घरजवाईं”, और “मेरी गंगा होली त मैमा आली” में भी अपनी आवाज़ दी है। उनके संगीत निर्देशन के तहत बॉलीवुड के प्रसिद्ध गायकों जैसे उदित नारायण, लता मंगेशकर, आशा भोंसले, पूर्णिमा, सुरेश वाडकर, अनुराधा पौडवाल और जसपाल ने भी गढ़वाली फिल्मों में गाया है। इसके अलावा, वे गढ़वाली संगीत की उत्साही गायिका माधुरी बार्थवाल के साथ भी गा चुके हैं।
संगीत के क्षेत्र में नवाचार और योगदान
नरेंद्र सिंह नेगी ने पारंपरिक गढ़वाली संगीत को आधुनिकता के साथ मिलाकर प्रस्तुत किया, जिससे उनकी आवाज़ और गीत लोगों के दिलों में बस गए। उनके गीत केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं रहते, बल्कि वे सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों को भी उजागर करते हैं। उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से सामाजिक संदेश, राजनीतिक सच्चाई और प्राकृतिक सौंदर्य की प्रशंसा की है।
उनके गीतों में अक्सर उत्तराखंड के ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों, पहाड़ी महिलाओं की संघर्ष गाथा और पर्यावरण की महत्ता को उकेरा गया है। “नौचामी नरेना” और “यखि बसा राय जाुला” जैसे उनके गीत लोगों के मन में गहरे बसे हुए हैं और उत्तराखंड के जनमानस को संगीत की एक नई दिशा दी है।
संगीत के विभिन्न रूपों में महारत
नेगी जी ने उत्तराखंड के पारंपरिक संगीत के लगभग हर रूप में गाया है। “जागर” में उन्होंने देवताओं की आराधना और धार्मिक अनुष्ठानों का जीवंत चित्रण किया, जबकि “मंगल” गीतों में शादी और धार्मिक समारोहों की खुशियों का वर्णन किया। “छोपती” और “चौंफुला” जैसे नृत्य गीतों ने लोगों को झूमने पर मजबूर किया। उनकी आवाज़ और संगीत ने सभी को उत्तराखंडी संस्कृति के करीब लाया और इसे जीवंत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
Narendra Singh Negi को मिले पुरस्कार और सम्मान
नेगी जी के संगीत के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया है।
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार 2022:
9 अप्रैल 2022 को, नेगी जी को दिल्ली में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस सम्मान को राज्य के लिए गर्व का विषय बताया। यह सम्मान नेगी जी की पारंपरिक लोक संगीत में अपार योगदान का राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान है। - आवाज़ रत्न पुरस्कार 2021:
15 सितंबर 2021 को हिंदी दिवस के अवसर पर, नेगी जी को आवाज़ रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
Narendra Singh Negi जी की एल्बम और गीत सूची
नेगी जी के अनेक एल्बम उनके संगीत के विविधता और उनकी आवाज़ की मधुरता को दर्शाते हैं। कुछ प्रमुख एल्बम हैं:
- तूई छाई (2023)
- क्या जी बोलूं (2022)
- उत्तराखंड देवभूमि (2023)
- कब आयली (2022)
- स्याली रामदेई (2022)
- बैंड बिजोरा (2022)
- होरी का खिलाड़ी (2022)
- कैमरा म्वारा (2022)
- चली भाई मोटर चली (2005)
- घस्यारी (2002)
- नौचामी नरेना (2006)
- उठ जागा उत्तराखंड (2017)
इनके अलावा, उनके कई अन्य गीत भी हैं जो लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं और उत्तराखंडी संस्कृति को संजोए हुए हैं।
उत्तराखंड की धरोहर के संरक्षक
नरेंद्र सिंह नेगी का योगदान केवल संगीत तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को बचाने का कार्य भी किया है। उनके गीतों ने कई युवाओं को प्रेरित किया है कि वे भी पारंपरिक संगीत को अपनाएं और इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाएं। उनका संगीत न केवल मनोरंजन प्रदान करता है, बल्कि लोक संस्कृति की पहचान को भी बनाए रखता है।
नेगी जी का मानना है कि संगीत का उद्देश्य केवल गाना गाना नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से लोगों के दिलों को छूना, समाज के ज्वलंत मुद्दों को उजागर करना और संस्कृति को जीवंत रखना भी है। उनके गीतों में निहित गहरी भावनाएं और संदेश हर किसी को सोचने पर मजबूर करते हैं।
Narendra Singh Negi: उत्तराखंड की आवाज़
नेगी जी को “उत्तराखंड की आवाज़” के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से लोगों की भावनाओं, संघर्ष और खुशी को व्यक्त किया है। उनके गीतों में उत्तराखंड के लोक जीवन की सच्चाई और पहाड़ियों की सुंदरता की झलक मिलती है। उन्होंने पारंपरिक और समकालीन धुनों का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत किया, जिसने उत्तराखंडी संगीत को एक नई पहचान दिलाई।
नरेंद्र सिंह नेगी एक ऐसी हस्ती हैं जिन्होंने अपनी आवाज़ और गीतों के माध्यम से उत्तराखंड की संस्कृति को सजीव बनाए रखा है। उनका संगीत पारंपरिक लोक धुनों और आधुनिकता का एक बेहतरीन संयोजन है जो हर उम्र के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। उनके संगीत ने उत्तराखंड के लोगों को गर्व से भर दिया है और उनकी रचनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए एक धरोहर के रूप में रहेंगी।
नरेंद्र सिंह नेगी को ‘गढ़ रत्न’ के रूप में मान्यता मिलना उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर के प्रति उनकी अथक सेवा का प्रतीक है। उनके संगीत का जादू और उनकी आवाज़ की मधुरता हमेशा लोगों के दिलों में गूंजती रहेगी, और वे आने वाले समय में भी उत्तराखंड के संगीत और संस्कृति के संरक्षक बने रहेंगे।
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