
आज भाद्रपद मास की सिंह संक्रांति पर उत्तराखंड में पारंपरिक घी संक्रांति (जिसे ओलगिया भी कहते हैं) बड़े उत्साह और आस्था के साथ मनाई जा रही है। यह पर्व केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसमें लोकजीवन, कृषि परंपरा और स्वास्थ्य के गहरे संदेश छिपे हुए हैं। भाद्रपद माह की सिंह संक्रांति पर आने वाला यह पर्व इस बार रविवार को पड़ने से और भी खास बन गया है। गांव-गांव और घर-घर में घी, दही और मक्खन से बने पारंपरिक व्यंजन तैयार किए जा रहे हैं ।
उत्तराखंड के ग्रामीण अंचलों में लोग इस लोकपर्व पर बेड़ू रोटी, गाबे, दाल और मक्खन-घी से बने व्यंजन सूर्य देव को अर्पित करते हैं और फिर परिवार के साथ भोजन किया जाता है। वहीं बच्चों के सिर पर घी का टीका लगाया जाता है और उनकी लंबी उम्र की कामना की जाती है।
पर आखिर क्यों मनाया जाता है उत्तराखंड का यह अनोखा लोकपर्व आइये जानते हैं।
पौराणिक मान्यता
मान्यता है कि इस दिन सूर्य जब सिंह राशि में प्रवेश करता है तो नई ऋतु का आरंभ होता है। ऋतुओं के इस बदलाव पर सूर्य देव को घी अर्पित करने और घी का सेवन करने की परंपरा है। लोककथाओं में कहा गया है कि यदि कोई इस दिन घी नहीं खाता तो अगले जन्म में उसे घोंघे की योनि प्राप्त होती है।
कृषि और सामाजिक कारण
यह पर्व किसानों और समाज के आपसी रिश्तों से भी जुड़ा है। जब खेतों में नई फसल की तैयारी होती है, तब किसान अपने गुरुजनों, पुरोहितों और रिश्तेदारों को ओलग यानी फसल या उपज भेंट करते हैं। इससे न केवल कृतज्ञता जताई जाती है बल्कि रिश्तों में आपसी विश्वास और सामूहिकता भी बढ़ती है।
स्वास्थ्य और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण
घी संक्रांति को ‘घृत संक्रांति’ भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन घी, दही और मक्खन का सेवन अनिवार्य माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, वर्षा ऋतु के बाद शरीर कमजोर हो जाता है। ऐसे में घी का सेवन पाचन शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इस दिन पर्व से जुड़े व्यंजन – जैसे बेड़ू रोटी, गाबे और मक्खन से बने पकवान – शरीर को पोषण और ऊर्जा प्रदान करते हैं।
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भाईचारा और सामूहिकता का प्रतीक
इस दिन केवल भोजन या दान नहीं होता, बल्कि पूरा गाँव-समाज एकजुट होकर इसे मनाता है। रिश्तों में मिठास, भाईचारे और सामूहिकता को मजबूत करने का यही संदेश इस पर्व का सबसे बड़ा उद्देश्य है।
घी संक्रांति केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि आस्था, कृषि, स्वास्थ्य और समाज के चार स्तंभों पर आधारित पर्व है। यह परंपरा हमें बताती है कि भोजन, रिश्ते और संस्कृति – तीनों का संतुलन ही जीवन को पूर्ण बनाता है।
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