
भिटौली (Bhitoli)
Bhitoli 2025: उत्तराखंड की संस्कृति में कई परंपराएं ऐसी हैं, जो सिर्फ रीति-रिवाज नहीं बल्कि गहरे भावनात्मक संबंधों को दर्शाती हैं। ऐसी ही एक परंपरा है भिटौली, जो हर वर्ष चैत्र माह (मार्च-अप्रैल) में मनाई जाती है। यह पर्व खासकर उन बेटियों के लिए होता है, जो शादी के बाद ससुराल चली जाती हैं। मायके से उनके लिए उपहार और स्नेहभरी भेंट भेजी जाती है, जिसे भिटौली कहा जाता है।
भिटौली (Bhitoli) कब मनाई जाती है?
भिटौली (Bhitoli 2025) का आयोजन चैत्र मास के दौरान किया जाता है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार नववर्ष का पहला महीना होता है। इस समय प्रकृति भी नवीनता का संचार कर रही होती है और पहाड़ों में वसंत की सुगंध फैल चुकी होती है। आमतौर पर यह पर्व चैत्र नवरात्रि के समय मनाया जाता है, जब परिवार अपनी बेटियों को मायके से प्रेम और आशीर्वाद भेजते हैं।
भिटौली मनाने की मान्यताएं और परंपरा
भिटौली केवल एक रिवाज नहीं, बल्कि इसके पीछे एक मार्मिक कथा जुड़ी हुई है। नरिया और देबुली की कहानी इस परंपरा को और भी भावुक बना देती है।
नरिया और देबुली की कहानी
पहाड़ों के एक छोटे-से गांव में नरिया और देबुली नामक भाई-बहन रहते थे। दोनों बचपन से ही एक-दूसरे के बहुत करीब थे, लेकिन समय के साथ देबुली का विवाह दूर के गांव में कर दिया गया। विदाई के समय देबुली ने नरिया से वादा किया कि वह उसे मिलने आएगी, परंतु ससुराल की जिम्मेदारियों के कारण वह नहीं आ सकी।
समय बीतता गया और नरिया अपनी बहन को याद कर दुखी रहने लगा। यह देखकर उसकी मां ने एक टोकरी में मिठाइयाँ, फल, कपड़े और घर के बने पकवान रखकर उसे देबुली के ससुराल भेजा। नरिया लंबी यात्रा के बाद वहाँ पहुँचा, लेकिन जब वह पहुँचा तो देबुली गहरी नींद में थी। उसने अपनी बहन को जगाना उचित नहीं समझा और उसके दरवाजे पर टोकरी रखकर लौट आया।
जब देबुली की नींद खुली और उसने अपने मायके से आए पकवानों को देखा, तो वह दौड़कर अपने भाई को बुलाने निकली, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वह पश्चाताप में रोने लगी और कहा— “भै भूखों-मैं सिती…” (भाई भूखा रहा और मैं सोती रही)।
इस दुख के कारण उसकी मृत्यु हो गई। कहा जाता है कि देबुली की आत्मा “घुघुति” नाम की एक पक्षी बनी, जिसकी पुकार आज भी पहाड़ों में सुनाई देती है।
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भिटौली का महत्व
1. भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक
भिटौली भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। यह पर्व न केवल पारिवारिक प्रेम को दर्शाता है, बल्कि बेटियों के प्रति मायके की भावनात्मक जुड़ाव को भी दिखाता है।
2. विवाहिता बेटियों के लिए विशेष पर्व
पहाड़ों में बेटियों के लिए भिटौली एक खास पर्व होता है। उन्हें मायके से तोहफे भेजे जाते हैं, जिससे उन्हें यह एहसास हो कि वे अपने घर-परिवार से दूर होते हुए भी जुड़ी हुई हैं।
3. पारंपरिक पकवानों का आदान-प्रदान
भिटौली के दौरान विशेष पुए, सिंगल, रायता, पूरी और मिठाइयाँ बनाई जाती हैं, जो बेटियों को भेजी जाती हैं। यह पारंपरिक खानपान भी पर्व को और खास बना देता है।
भिटौली (Bhitoli 2025) सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति और परिवारिक प्रेम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पर्व हमें बताता है कि चाहे दूरी कितनी भी हो, लेकिन परिवार का स्नेह कभी कम नहीं होता। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और आगे भी इसी प्रेम और भावनाओं के साथ मनाई जाती रहेगी।
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