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Uttarakhand Inspiring Stories : कौन कहता है पहाड़ के बच्चे बस होटल में जाते हैं? कुछ ऐसे भी हैं जो बदलाव की मिसाल बन जाते हैं!

Uttarakhand Inspiring Stories में आज हम आपको राज्य के ऐसे दोस्तों से मिलते हैं जिन्होंने उत्तराखंड के पारमपरिक नमक बेचकर डेढ़ करोड़ से ज्यादा का रेवेन्यू सालाना कमाया है।

Uttarakhand Inspiring Stories फाइल फोटो

Uttarakhand Inspiring Stories में आज हम आपको राज्य के ऐसे दोस्तों से मिलते हैं जिन्होंने उत्तराखंड के पारमपरिक नमक बेचकर डेढ़ करोड़ से ज्यादा का रेवेन्यू सालाना कमाया है।  आप भी पढ़िए ये पूरी कहानी जो आपको भी समाज के ताने बाने से कुछ हटके करने की प्रेरणा देगी।

Uttarakhand Inspiring Stories – हिमफ्ला

मिलिए  उत्तराखंड के संदीप पांडे से जिनका सपना था कि वे नैनीताल में एक रेस्तरां खोलें और अपने गृह राज्य के लोगों के लिए एक नई शुरुआत करें। उन्होंने 2009 में दिल्ली में अपना इंजीनियरिंग करियर छोड़ अपने बचपन के शहर में इस सपने की नींव रखी। लेकिन 2013 की विनाशकारी बाढ़ ने उनके इस सपने को चकनाचूर कर दिया। “उद्घाटन से ठीक एक हफ़्ते पहले, प्राकृतिक आपदा ने सब कुछ तबाह कर दिया,” वे याद करते हैं। छह महीने तक सड़कें बंद रहीं, और उनके पास कोई योजना भी नहीं बची थी।

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हिमफ्ला

हिमफ्ला का सालाना रेवेन्यू अब 1.5 करोड़ रुपये

इस कठिन दौर में भी संदीप ने हार नहीं मानी। अपने दोस्तों सौरभ पंत और योगेन्द्र सिंह के साथ मिलकर उन्होंने उत्तराखंड के पारंपरिक ‘पहाड़ी’ नमक के व्यवसाय की शुरुआत की, जिसका नाम रखा “हिमफ्ला”। आज, हिमफ्ला न केवल उत्तराखंड में बल्कि दुनिया के कई हिस्सों – ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूके, दुबई, जर्मनी, सिंगापुर, और ब्राज़ील तक अपनी पहचान बना चुका है। हिमफ्ला हर महीने करीब 20 क्विंटल फ्लेवर्ड नमक बना रहा है, और इसका सालाना रेवेन्यू अब 1.5 करोड़ रुपये से अधिक है।

पहले पाँच फ्लेवर्स – लहसुन हरी मिर्च, लहसुन लाल मिर्च, लहसुन पीली मिर्च, भांग, और पुदीना से शुरुआत करते हुए, आज हिमफ्ला के पास 52 फ्लेवर्स हैं। इनमें तिमुर (उत्तराखंड की उच्च हिमालयी क्षेत्रों से उगाई जाने वाली सिचुआन मिर्च), भांग (ओमेगा से भरपूर), गंड्रेनी काला जीरा और कई अन्य पारंपरिक मसाले शामिल हैं। संदीप और उनके दोस्तों का यह स्टार्टअप न केवल व्यापार कर रहा है, बल्कि उत्तराखंड के ग्रामीण परिवारों को सम्मानपूर्वक रोजगार भी उपलब्ध करवा रहा है।

संदीप की इस यात्रा ने साबित कर दिया है कि पहाड़ के बच्चे केवल होटल में ही नहीं, बल्कि दुनिया में बदलाव की मिसाल भी बन सकते हैं।

 

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