चमोली/नैनीताल, 17 दिसंबर 2024: उत्तराखंड की पर्वतीय दुश्वारियों का सच एक बार फिर सामने आया है। आज़ादी के 77 साल बाद भी राज्य के कई गांव सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। सड़कों के अभाव में ग्रामीणों को जान जोखिम में डालकर बीमार बुजुर्गों और मरीजों को अस्पताल पहुंचाना पड़ रहा है।
चमोली: डुमक गांव की संघर्ष गाथा
उत्तराखंड के चमोली जिले के दूरस्थ डुमक गांव में सड़क न होने के कारण 62 वर्षीय भवान सिंह सनवाल को ग्रामीणों ने डंडी-कंडी के सहारे 7 किलोमीटर पैदल मुख्य सड़क तक पहुंचाया। वहां से उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। ग्रामीण बताते हैं कि पथरीले और खतरनाक रास्तों पर इस तरह मरीजों को ले जाना उनकी मजबूरी है।
डुमक गांव के लोग बीते 27 दिनों से गोपेश्वर में डीएम कार्यालय के बाहर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं। उनकी मांग है कि गांव तक सड़क और स्वास्थ्य सुविधाएं दी जाएं। लेकिन शासन और प्रशासन की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
ग्रामीणों ने बताया कि सड़क और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में गांव से पलायन बढ़ता जा रहा है। कई युवा गांव छोड़कर शहरों में बसने को मजबूर हो गए हैं।
नैनीताल: बबियाड़ तोक बिरसिंग्या गांव का दर्द
उत्तराखंड के नैनीताल जिले के धारी क्षेत्र से भी ऐसी ही तस्वीरें सामने आईं। भीमताल-धारी के बबियाड़ तोक बिरसिंग्या गांव में 65 वर्षीय महिला मधुली देवी को ग्रामीणों ने पांच किलोमीटर तक पैदल डोली के सहारे मुख्य सड़क तक पहुंचाया। वहां से उन्हें निजी वाहन से हल्द्वानी अस्पताल ले जाया गया, जो गांव से 90 किलोमीटर दूर है।
ग्राम पंचायत बिरसिंग्या के युवा समाजसेवी दीपक सिंह मेवाड़ी ने बताया कि गांव में सड़क न होने के कारण लोग कई किमी पैदल चलने को मजबूर हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि बार-बार मांग उठाने के बावजूद सरकार और विभाग सड़क निर्माण में नाकाम रहे हैं।
पलायन और बदहाल व्यवस्थाएं
उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में सड़क और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव ने पलायन को तेज कर दिया है। जहां गांव की सड़कें जीवनरेखा होनी चाहिए, वहीं यहां के लोग अपनी बुनियादी ज़रूरतों के लिए धरना और आंदोलन करने को मजबूर हैं।
सरकार के दावे और जमीनी हकीकत
राज्य सरकार उत्तराखंड भले ही ग्रामीण विकास और कनेक्टिविटी के बड़े दावे करती हो, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है। चमोली और नैनीताल जैसे इलाकों में लोगों का सड़क और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए संघर्ष यह बताता है कि विकास योजनाएं सिर्फ कागजों तक सीमित हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि अगर जल्द ही उनकी मांगों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो वह आंदोलन को और तेज करेंगे।
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