Uttarakhand Big Breaking: उत्तराखंड में इन दिनों 2906 पदों पर शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया के बीच आरक्षण को लेकर एक बड़ा विवाद सामने आया है। इस भर्ती प्रक्रिया में कई ऐसे द्विवर्षीय डीएलएड महिला अभ्यर्थियों ने भी आवेदन किया, जिनका विवाह उत्तराखंड से बाहर के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली आदि में हुआ था और जिन्होंने विवाह के बाद उत्तराखंड में निवास करना शुरू किया। अब शिक्षा विभाग के नए निर्देशों के अनुसार, इन महिलाओं का आरक्षण का दावा खारिज होने की संभावना है, जिससे 70 से अधिक महिला अभ्यर्थियों का चयन रद्द हो सकता है। इस घटनाक्रम ने भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और आरक्षण की नीति पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
आरक्षण विवाद पर उत्तराखंड की बहुओं का हक
उत्तराखंड में जिन महिला अभ्यर्थियों ने दूसरे राज्य से विवाह के बाद निवास शुरू किया, उनका दावा है कि वे स्थानीय निवासी बन चुकी हैं और उन्हें उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों में आरक्षण का अधिकार मिलना चाहिए। उन्होंने शिक्षा निदेशालय में धरना देकर मांग की कि उन्हें सहायक अध्यापक के पदों पर आरक्षण के लाभ के साथ नियुक्ति दी जाए। परंतु, शिक्षा निदेशालय ने शासन से मार्गदर्शन की मांग की, जिससे ये स्पष्ट हो सके कि दूसरे राज्य से उत्तराखंड में विवाह के बाद आईं महिलाओं को आरक्षण का लाभ देना उचित है या नहीं।
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शासन का सख्त रुख – आरक्षण सिर्फ पैतृक राज्य में ही मान्य
शासन ने कार्मिक विभाग के 10 अक्टूबर 2002 के शासनादेश का हवाला दिया, जिसमें साफ तौर पर उल्लेखित है कि उत्तर प्रदेश या अन्य किसी राज्य का कोई व्यक्ति उत्तराखंड में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के आरक्षण का लाभ नहीं पा सकता। इसके अलावा, समाज कल्याण विभाग के 29 दिसंबर 2008 के आदेश में भी कहा गया है कि दूसरे राज्य में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा, भले ही विवाह उत्तराखंड में हुआ हो। ऐसे में, दूसरे राज्य से आईं महिलाओं को अपने पैतृक राज्य में ही आरक्षण का अधिकार प्राप्त होगा और उन्हें उत्तराखंड में आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकेगा।
नियुक्ति की मांग पर उत्तराखंड की बहुओं का आंदोलन
आरक्षण का लाभ प्राप्त न होने से आहत इन महिला अभ्यर्थियों ने शिक्षा निदेशालय में प्रदर्शन कर अपना पक्ष रखा। उन्होंने सरकार से मांग की कि चूंकि उनका विवाह उत्तराखंड में हुआ है और वे अब स्थायी रूप से यहीं निवास कर रही हैं, ऐसे में उन्हें भी उत्तराखंड में आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। कई महिलाएं तो इस विवाद को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटा सकती हैं, जिससे भर्ती प्रक्रिया पर कानूनी प्रभाव भी पड़ सकता है।
शिक्षकों की बर्खास्तगी का खतरा
यह विवाद उन महिला अभ्यर्थियों पर भी असर डाल सकता है, जो अन्य राज्य से उत्तराखंड आकर डीएलएड करने के बाद सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त हो चुकी हैं। शिक्षा विभाग ने यह साफ किया है कि स्थायी निवास की बाध्यता का पालन न करने पर ऐसे अभ्यर्थियों की नियुक्ति रद्द की जा सकती है। कुछ अभ्यर्थियों ने अपने पैतृक राज्य के जाति प्रमाण पत्र को रद्द करवाकर उत्तराखंड से जाति एवं निवास प्रमाण पत्र बनवाया है, परंतु अब उनके प्रमाण पत्रों की भी जांच की जा रही है।
उत्तराखंड में शिक्षा विभाग का रुख और आगे की कार्रवाई
शिक्षा निदेशालय ने अन्य राज्यों से आई इन महिला अभ्यर्थियों के मामले में कार्मिक विभाग और समाज कल्याण विभाग से परामर्श लिया है, ताकि उनकी नियुक्ति पर अंतिम निर्णय लिया जा सके। निदेशालय का कहना है कि भर्ती प्रक्रिया में किसी प्रकार की अनियमितता नहीं होने दी जाएगी और नियमों का कड़ाई से पालन किया जाएगा।
बढ़ते विवाद और प्रशासनिक चुप्पी
इस पूरे विवाद ने शिक्षा विभाग में हड़कंप मचा दिया है। एक तरफ महिला अभ्यर्थियों का आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ सरकार का रुख भी साफ नजर आ रहा है कि पैतृक राज्य से बाहर आरक्षण का लाभ देना संभव नहीं है। यह देखना बाकी है कि सरकार और शिक्षा विभाग इस विवाद को कैसे सुलझाते हैं।
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