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भगवान दत्तात्रेय जन्म कथा और पतिव्रता सती माता अनसूइया की अद्भुत कथा

भगवान दत्तात्रेय जन्म कथा और पतिव्रता सती माता अनसूइया की अद्भुत कथा

भगवान दत्तात्रेय जन्म कथा और पतिव्रता सती माता अनसूइया की अद्भुत कथा

भगवान दत्तात्रेय का जन्म माता अनुसूया की पतिव्रता धर्म की महिमा का अद्वितीय उदाहरण है। यह कथा त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—की परीक्षा, माता अनुसूया के सतीत्व की विजय और भगवान दत्तात्रेय के अवतरण की है।

भगवान दत्तात्रेय किसके अवतार हैं?

भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—के संयुक्त अवतार के रूप में पूजा जाता है। वे ज्ञान, योग और तपस्या के प्रतीक माने जाते हैं।

माता अनसूइया की पतिव्रता धर्म की परीक्षा

एक बार नारद मुनि ने लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती से कहा कि महर्षि अत्रि की पत्नी, माता अनुसूया, त्रिलोक की सबसे महान पतिव्रता हैं। यह सुनकर तीनों देवियों के मन में माता अनुसूया के पतिव्रता धर्म को परखने का विचार आया। उन्होंने त्रिदेवों से आग्रह किया कि वे स्वयं इस सत्य की परीक्षा लें।

त्रिदेव महर्षि अत्रि के आश्रम पहुँचे और मुनि का वेश धारण किया। महर्षि उस समय आश्रम में उपस्थित नहीं थे। त्रिदेवों ने माता अनुसूया से कहा कि वे तभी भोजन स्वीकार करेंगे जब वह बिना वस्त्र के उन्हें भोजन कराएंगी।

माता अनुसूया धर्म संकट में पड़ गईं। उन्होंने अपने सतीत्व का स्मरण करते हुए कहा:
“यदि मैंने सच्चे मन से पतिव्रता धर्म का पालन किया है, तो आप तीनों मुनि छोटे शिशु बन जाएं।”
जैसे ही उन्होंने यह वचन दिया, त्रिदेव तुरंत शिशु बन गए। माता अनुसूया ने उन्हें दूध पिलाकर पालने में सुला दिया।

त्रिदेवियों का पश्चाताप और भगवान दत्तात्रेय का जन्म

जब तीनों देवियों—लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती—को अपने पतियों का पता नहीं चला, तो वे चिंतित होकर आश्रम पहुँचीं। उन्होंने माता अनुसूया से क्षमा याचना की और अपने पतियों को लौटाने की प्रार्थना की।

माता अनुसूया ने त्रिदेवों को पूर्व रूप में लौटाया। त्रिदेव इस घटना से प्रसन्न होकर अपने-अपने अंश से माता अनुसूया के पुत्र रूप में अवतरित हुए।

इस प्रकार भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ, जो त्रिदेवों के गुणों के समन्वय हैं।

भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरु

भगवान दत्तात्रेय ने प्रकृति और जीवन से 24 गुरु माने, जिनसे उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। उनके कुछ प्रमुख गुरु हैं:

  1. पृथ्वी – सहनशीलता और त्याग।
  2. वायु – बिना आसक्ति के स्वतंत्रता।
  3. आकाश – सभी को समान रूप से स्थान देना।
  4. जल – स्वच्छता और पवित्रता।
  5. अग्नि – हमेशा ऊँचा रहना और शुद्ध करना।
  6. सूर्य – स्वार्थ रहित सेवा।
  7. पक्षी (पिंगला) – त्याग और संतोष।

दत्तात्रेय भगवान के मंत्र

दत्तात्रेय भगवान का मंत्र अत्यधिक प्रभावशाली है:
“ॐ द्रम दत्तात्रेयाय नमः”
इस मंत्र का जाप भक्तों के सभी कष्ट दूर करता है और ज्ञान प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

दत्तात्रेय भगवान के प्रमुख मंदिर

भगवान दत्तात्रेय के मंदिर भारत के विभिन्न हिस्सों में हैं, जैसे:

  1. गिरनार पर्वत (गुजरात) – यह स्थान भगवान दत्तात्रेय की तपस्या के लिए प्रसिद्ध है।
  2. अक्कलकोट (महाराष्ट्र) – यहाँ भगवान दत्तात्रेय के अवतार, श्री स्वामी समर्थ, की पूजा होती है।
  3. नरसिंहवाड़ी (महाराष्ट्र) – इसे ‘दत्त क्षेत्र’ कहा जाता है।

दत्तात्रेय पुराण और अवतार

दत्तात्रेय भगवान के जीवन और शिक्षाओं का वर्णन दत्तात्रेय पुराण में मिलता है। उनकी शिक्षाएँ आत्मज्ञान, वैराग्य और समर्पण पर आधारित हैं।
दत्तात्रेय भगवान के कई अवतार हुए, जिनमें प्रमुख हैं:

दत्तात्रेय जन्म कथा मराठी में

दत्तात्रेय भगवान का जन्म कथा मराठी में भी विशेष रूप से प्रचलित है। महाराष्ट्र में उनकी पूजा दत्त जयंती के दिन धूमधाम से होती है।

भगवान दत्तात्रेय की कथा सिखाती है कि सच्चा धर्म सच्चाई, तपस्या और निस्वार्थ सेवा में है। माता अनुसूया का सतीत्व और दत्तात्रेय भगवान की शिक्षाएँ हमें जीवन में धैर्य, समर्पण और ज्ञान का महत्व समझाती हैं।

दत्तात्रेय कथा 

भगवान दत्तात्रेय की कथा अद्वितीय है, जिसमें ज्ञान, तपस्या और भक्तिमान जीवन का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। उनकी लीलाएँ और शिक्षाएँ न केवल आध्यात्मिक समृद्धि की ओर ले जाती हैं, बल्कि मानवता की सेवा के प्रति प्रेरित भी करती हैं।

भगवान दत्तात्रेय का जन्म महर्षि अत्रि और उनकी पतिव्रता पत्नी अनुसूया के घर हुआ था। वे त्रिदेवों—ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अंश से उत्पन्न हुए थे। उनकी कथा विशेष रूप से उस समय की है जब माता अनुसूया के पतिव्रत धर्म को परखने के लिए त्रिदेव disguised रूप में पहुंचे।

एक बार जब त्रिदेवों ने माता अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा ली, तब उन्होंने बिना वस्त्र के उनका आतिथ्य स्वीकार करने की चुनौती दी। माता अनुसूया ने उनकी इस चुनौती को स्वीकार किया और उन्होंने अपने तप के बल पर त्रिदेवों को छोटे बच्चों के रूप में बदल दिया।

माता अनुसूया ने उन बाल त्रिदेवों को अपने वात्सल्य से भरपूर प्यार दिया। उन्होंने उन्हें अपना दूध पिलाया और उनकी देखभाल की। इस समय त्रिदेव अपनी शक्ति और वैभव को भूलकर एक सामान्य बालक के रूप में माता के प्रेम में डूबे रहे।

त्रिदेवों के इस वात्सल्य में बंधे रहने के बाद, माता अनुसूया ने उनके पूर्व रूप में लौटने के लिए मंत्रोच्चार किया और जल छिड़का। इसके पश्चात, त्रिदेव अपने असली रूप में लौट आए। फिर त्रिदेवों ने माता अनुसूया को वरदान दिया कि उनके तपस्या के प्रताप से भगवान दत्तात्रेय का जन्म होगा, जो भविष्य में ज्ञान, तपस्या और सेवा के आदर्श रूप में प्रकट होंगे।

भगवान दत्तात्रेय की शिक्षाएँ हमें यह सिखाती हैं कि ज्ञान के प्रति उत्सुकता, सेवा भावना और तपस्या ही मनुष्य को जीवन के उच्चतम लक्ष्य की ओर ले जाती है। उनकी कथा न केवल साधना की प्रेरणा देती है, बल्कि मानवता की सेवा के प्रति भी मार्गदर्शन करती है।

इस प्रकार, भगवान दत्तात्रेय के जन्म और उनके जीवन की घटनाएँ हमें अपने आत्मा के साथ जुड़ने और जीवन को सर्वोत्तम तरीके से जीने का संदेश देती हैं।

 

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